भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, द्वारका का जगत मंदिर। इस मंदिर को द्वारिकाधीश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 2 हजार साल से भी पुराना है। मथुरा छोड़ने के बाद श्रीकृष्ण ने इसी शहर में एक नगरी बसाई थी और वहां उन्होंने अपने लिए एक निजी महल 'हरि गृह' भी बसाया था, जहां आज के समय में द्वारिकाधीश मंदिर है। यह चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी व रामेश्वरम) व सात पुरियों में से एक भी है। इस मंदिर को भी मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े जाने की कोशिश की जा चुकी है।
मंदिर की पौराणिक मान्यता
ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर सबसे पहले मंदिर का निर्माण श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। लेकिन मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर एकांत में माता रुक्मिणी का मंदिर है। कहा जाता है कि दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा।
द्वारिकाधीश मंदिर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगों के लिए विशेष मान्यता रखता है। द्वारकाधीश मंदिर में दो द्वार हैं जिनमें से एक द्वार को स्वर्गद्वार और दूसरे को मोक्ष द्वार कहां जाता है। मंदिर के पूर्व दिशा में दुर्वासा ऋषि का एक भव्य मंदिर स्थित है और दक्षिण में जगद्गुरु शंकराचार्य का शारदा मठ। इसके अलावा इस मंदिर के उत्तरी मुख्य द्वार के समीप ही कुशेश्वर नाथ का शिव मंदिर है, जहां पर भगवान श्री विक्रम ने कुश नाम के राक्षस का वध किया था। कहा जाता है कि कुशेश्वर शिव मंदिर के दर्शन के बिना द्वारिका धाम का तीर्थ पूरा नहीं होता।
कैसे हुआ द्वारिका नगरी का अंत
धार्मिक कथाओं की मानें तो महाभारत युद्ध के पश्चात, पांडव पक्ष का समर्थन करने के कारण कौरवों की माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया था कि जिस प्रकार से उनके कौरव कुल का नाश हुआ, ठीक उसी प्रकार कृष्ण के कुल का भी नाश हो जाएगा। यही कारण था कि उनके सभी यदुवंशी कुल के नाश के पश्चात पूरी की पूरी द्वारिका नगरी समुद्र में समाहित हो गई।
कैसे पहुंचें द्वारिकाधीश मंदिर
यहां का नजदीकी हवाई अड्डा जामनगर एयरपोर्ट है, जो यहां से करीब 140 किलोमीटर दूर स्थित है। द्वारका में भी एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है, जो कि राज्य के तमाम शहरों से जुड़ा हुआ है। यहां बस से भी पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा आप अपने निजी वाहन से भी यहां पहुंच सकते हैं।