झांसी का नाम आते ही अपने आप झासी का नाम याद आ जाता है। बेतवा नदी के तट पर स्थित झांसी का नाम इतिहास के पन्नों में कुछ तरह दर्ज है कि इसे भुलाया नहीं जा सकता है। यह शहर झांसी किले के चारों ओर फैला हुआ है, जो उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। यहां के हर घर में आपको रानी लक्ष्मीबाई के किस्से सुनने को मिल जाएंगे। ऐसे में अगर आप झांसी की सैर करना चाहते हैं और उसके इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं तो यह लेख आपके काम आ सकता है।
आजादी की पहली लड़ाई (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) रानी लक्ष्मीबाई के द्वारा ही लड़ी गई थी, जो ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई थी। लक्ष्मीबाई की कर्मभूमि रही झांसी आज भी अपनी इतिहास अपने अंदर दबाए हुए है। यहां किले, इनकी दीवारे, महल सब कुछ पुरानी यादें ताजा कर देते हैं। इतने शानदार इतिहास को दिखाते झांसी की सैर तो एक बार करनी ही चाहिए...।

पौराणिक काल से झांसी का संबंध
झांसी में एरच कस्बा नाम का एक गांव है, कहा जाता है कि इस गांव से ही होली पर्व की शुरुआत हुई, जो पूरे देश का ही एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। पौराणिक कथाओं की मानें को सतयुग काल में हिरणाकश्यप यही का राजा था, जो दैत्य राक्षस था लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। इसीलिए हिरणाकश्यप अपने पुत्र को मारना चाहता था, ऐसे में उसने अपनी बहन होलिका से उसे मारने की बात कही। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था।
इससे होलिका ने अपने भतीजे प्रहलाद को अपनी गोद में आग में बैठ गई, लेकिन भगवान की महिमा ऐसी हुई कि होलिका उस आग में जल गई और प्रहलाद बच निकले, इसी दिन को हम सभी को होलिका दहन के नाम से मनाते हैं। और फिर हिरणाकश्यप के वध पर राज्य में खुशियां मनाई जाने लगी और यही से जन्म होली पर्व का, जिसे आज लोग बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं।

झांसी का इतिहास
इतिहास की मानें तो झांसी चंदेल शासकों का गढ़ था और तब इसे बलवंतनगर के नाम से जाना जाता था। फिर 11वीं सदी में इस नगर का महत्व धीरे-धीरे कम होने लगा। फिर 17वीं शाताब्दी में इस शहर की शोहरत बढ़ी और उस समय यहां के राजा वीर सिंह देव बुंदेला (ओरछा) ने 1608 ईस्वी में झांसी की नींव रखी और 1613 ईस्वी में यहां एक किले का भी निर्माण कराया। फिर 1627 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई और फिर उनके पुत्र जुझार सिंह ने गद्दी संभाली।
तकरीबन 100 साल बाद साल 1729 में यहां के महाराजा बुंदेला पर मोहम्मद खान बंगाश ने हमला बोल दिया, इस युद्ध में पेशवा बाजी राव प्रथम ने महाराजा छत्रसाल की मदद की और दोनों ने मिलकर मुगल सेना को पराजित कर दिया। इस मदद के बदले में आभार स्वरूप उन्होंने राज्य का एक तिहाई हिस्सा मराठा पेशवा बाजी राव प्रथम को पेश किया, इस हिस्से में झांसी भी शामिल था। साल 1803 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी और मराठों के बीच एक संधि दस्तावेज पर हस्ताक्षर हुए। इस बीच शहर में झासी किले का प्रसार, रानी महल और महालक्ष्मी मंदिर व रघुनाथ मंदिर का निर्माण हुआ।

1838 ईस्वी में गंगाधर राव को झांसी के राजा के रूप में स्वीकार किया। फिर 1842 ईस्वी में गंगाधर राव की शादी मणिकर्णिका से हुई, जिसके बाद मणिकर्णिका को नया नाम लक्ष्मीबाई दिया गया। जिन्होंने अपने पति व महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद 1857 ईस्वी में अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं की और उनके खिलाफ जंग छेड़ दी। यह भारत की आजादी के लिए लड़ी गई पहली लड़ाई थी, जो लड़ाई लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई। फिर 1861 ईस्वी में ब्रिटिश सरकार ने झांसी की कमान जीवाजी राव सिन्धिया (ग्वालियर राज्य) को सौंप दिया और फिर 1886 ईस्वी में इस शहर की कमान खुद के पास ले ली।
झांसी का नाम झांसी कैसे पड़ा?
इस संबंध में कहा जाता है कि जब वीर सिंह जू देव बुन्देला इस शहर को देख रहे थे, तब उन्होंने अपने मंत्री से कहा कि कैसा झाइसी (धुंधला) दिखाई दे रहा था? तब से ही इस शहर को झाइसी कहा जाने लगा, जो वर्तमान समय में झांसी के नाम से जाना जाता है।
झांसी के प्रसिद्ध त्योहार
1. झांसी महोत्सव - यह पर्व फरवरी के अंत में या मार्च के शुरुआत में एक सप्ताह के लिए मनाई जाती है।
2. होली पर्व - झांसी के एरच कस्बा से ही होली की शुरुआत हुई थी।
झांसी में घूमने लायक स्थान
1. झांसी किला
2. रानी महल
5. गणेश मंदिर
7. रघुनाथ मंदिर
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