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देखें ओडिशा में बौद्ध धर्म से जुड़ी जगहें...

पढ़ें ओडिशा राज्‍य के कुछ प्राचीन बौद्ध स्‍थलों के बारे में।

By Namrata Shatsri

बौद्ध धर्म </a></strong>की स्‍थापना काल से लेकर अब तक का सफर आप ओडिशा में देख सकते हैं। हालांकि भगवान बुद्ध कभी भी अपने जीवनकाल में इस जगह पर नहीं आए थे लेकिन फिर भी यहां जगह-जगह पर आपको <strong><a href=बौद्ध धर्म की झलक" title="बौद्ध धर्म की स्‍थापना काल से लेकर अब तक का सफर आप ओडिशा में देख सकते हैं। हालांकि भगवान बुद्ध कभी भी अपने जीवनकाल में इस जगह पर नहीं आए थे लेकिन फिर भी यहां जगह-जगह पर आपको बौद्ध धर्म की झलक" loading="lazy" width="100" height="56" />बौद्ध धर्म की स्‍थापना काल से लेकर अब तक का सफर आप ओडिशा में देख सकते हैं। हालांकि भगवान बुद्ध कभी भी अपने जीवनकाल में इस जगह पर नहीं आए थे लेकिन फिर भी यहां जगह-जगह पर आपको बौद्ध धर्म की झलक

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आठवीं और दसवीं शताब्‍दी में भौमकारा के शासनकाल के दौरान बौद्ध राज्‍य का धर्म हुआ करता था और इस दौरान बौद्ध धर्म के तांत्रिक शैली का विकास हुआ था। पंद्रहवी शताब्‍दी तक ओडिशा में बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा था। इस काल में असंख्‍य स्‍तूप और मठ बनवाए थे जो आज भी ओडिशा के इतिहास और विरासत को गौरवमयी बनाते हैं।

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तो चलिए एक नज़र डालते हैं ओडिशा राज्‍य में प्राचीन बौद्ध धर्म स्‍थलों पर जिनके कारण इस राज्‍य का इतिहास इतना समृ‍द्ध बन पाया है।

 लंगुदी हिल

लंगुदी हिल

माना जाता है कि लंगुदी हिल ही वह स्‍थान है जहां पर बौद्ध भिक्षु महान सम्राट अशोक से मिले थे। कहते हैं कि इस भेंट के बाद सम्राट अशोक में बहुत बड़ा परिवर्तन आया था। अन्‍य स्‍थानों से भिन्‍न इस जगह पर कई पत्‍थर के शिलालेख हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्‍हें खुद सम्राट अशोक द्वारा लिखा और स्‍थापित किया गया है।

इस स्‍थान का मुख्‍य आकर्षण चट्टान को काटकर बनाए गए स्‍तूप और संरचनाएं हैं। यहां पर आप मठ, टेराकोटा आकृतियां, मुहर और विभिन्न प्रकार के टूटे हुए बर्तन पाए जाते हैं।PC: Ashishkumarnayak

उदयगिरी

उदयगिरी

U आकार की घाटी में स्थित उदयगिरी में बड़े-बड़े मठ, ईंटों के स्‍तूप, टू ब्रिक मठ और कई मंदिर एंव चट्टानों को काटकर बनाई गई संरचनाएं हैं।

इन मठ परिसरों को लगभग 1997 से 2000 के बीच खोदकर निकाला गया था। मठ में बड़ा सा आंगन, बैठे हुए भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा, गुप्‍त कक्ष, ईंटों से बना जलाशय और मंदिर परिसर है। इन मठों की वास्‍तुकला और शिल्‍पकला को देखकर पता चलता है कि इन्‍हें सातवीं और बारहवी ईस्‍वी में बनाया गया था।PC:Bernard Gagnon

रत्‍नागिरी

रत्‍नागिरी

आठवीं और दसवीं ईस्‍वी के दौरान तांत्रिक बौद्ध धर्म और कालचक्र तंत्र के जन्‍म में रत्‍नागिरी की अहम भूमिका मानी जाती है। माना जाता है कि बौद्ध के तांत्रिक रूप को मंगोलिया, तिब्‍बत और भारत के हिमालय क्षेत्र के सैंकड़ों लोग मानते थे। साक्ष्‍यों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि ओडिशा तांत्रिक बौद्ध धर्म का जन्‍मस्‍थान था और यहीं से पूरी दुनिया में इसका विस्‍तार हुआ।

यहां पर आपको दो विशाल सुंदर मठ भी दिखाई देंगें जिनमें असंख्‍य संरचनाएं बनी हैं और साथ ही यहां बड़ी संख्‍या में मन्‍नत स्‍तूप भी हैं। मान्‍यता है कि इन संरचनाओं को छठी ईस्‍वीं में बनवाना शुरु किया गया था और यह बारहवीं शताब्‍दी ईस्‍वीं तक महायाना बौद्ध धर्म का मुख्‍य केंद्र हुआ करता था। खुदाई में मिले इन मठों की संरचना के प्रवेश पर नक्‍काशी की गई है और यहां पर विभिन्न आकारों में बुद्ध के 24 विशाल मस्‍तक बने हुए हैं।PC: sabyasachi jana

ललितगिरी

ललितगिरी

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्‍वर से 90 किमी दूर स्थित ललितगिरी इस राज्‍य का सबसे प्राचीन बौद्ध धर्म परिसार है जिसकी स्‍थापना पहली शताब्‍दी ईस्‍वी में की गई थी। यहां पर खुदाई में ईटों से बना एक विशाल मठ मिला था। पुनर्निर्माण के बाद इस मठ में आज भी प्रार्थना सभा होती है।

साल 1985 में खुदाई के दौरान पत्‍थर के स्‍तूप से सोने की बनी टोकरी मिली थी। इस टोकरी में पवित्र हड्डियों के अवशेष थे। माना जाता है कि ये अवशेष स्‍वयं भगवान बुद्ध के थे।PC: Prithwiraj Dhang

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