आज अपने इस लेख में हम आपको जिस डेस्टिनेशन से अवगत करा रहे हैं उसे योद्धाओं की भूमि के नाम से जानते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं हरियाणा के कुरूक्षेत्र की जो एक ऐसा डेस्टिनेशन है जिसका वर्णन महाभारत में भी है। ज्ञात हो कि कुरूक्षेत्र का शाब्दिक अर्थ है - धर्म का क्षेत्र । यदि बात कुरूक्षेत्र के पर्यटन आयामों की हो तो आपको बताते चलें कि कुरूक्षेत्र पर्यटन, इतिहास और पौराणिक कथाओं से भरा पडा है। यहां की भूमि पर ही पांडवो और कौरवों के बीच का ऐतिहासिक युद्ध, महाभारत लडा गया था। यही वह जगह है जहां भगवान श्री कृष्ण ने, अर्जुन का मोह भंग करते हुए उन्हे भगवद् गीता का उपदेश दिया था।
Read in English: Travel to Kurukshetra, The Holy Land of the Mahabharata
कुरूक्षेत्र की पावन भूमि पर, हिंदू धर्म के उच्च सिद्धान्तों व कर्म व भोग के बारे में उपदेश दिए गए। कुरूक्षेत्र का इतिहास बेहद समृद्ध और रंगारंग रहा है। समय बीतने के साथ, यहां की पवित्रता में दिनों - दिन विकास हुआ है, और यहां के दौरे पर भगवान बुद्ध और कई सिक्ख गुरू आएं, जिन्होने यहां आकर अपनी अमिट छाप छोडी। इस शहर में कई धार्मिक स्थल है जैसे - मंदिर, गुरूद्वारे और कुंड - इनमें से कुछ तो भारतीय सभ्यता के शुरू के दिनों में स्थापित किए गए थे।
Photo Courtesy: Shekhartagra
कुरूक्षेत्र का इतिहास बेहद समृद्ध और रंगारंग रहा है। समय बीतने के साथ, यहां की पवित्रता में दिनों - दिन विकास हुआ है, और यहां के दौरे पर भगवान बुद्ध और कई सिक्ख गुरू आएं, जिन्होने यहां आकर अपनी अमिट छाप छोडी। इस शहर में कई धार्मिक स्थल है जैसे - मंदिर, गुरूद्वारे और कुंड - इनमें से कुछ तो भारतीय सभ्यता के शुरू के दिनों में स्थापित किए गए थे। तो अब देर किस बात की आइये इस आर्टिकल के जरिये जानें कि ऐसा क्या है जो एक ट्रैवलर को अपनी कुरूक्षेत्र यात्रा पर अवश्य देखना चाहिए ।
भीष्म कुंड
भीष्म कुंड, थानेसर में नरकाटारी में स्थित है जिसे भीष्मपितामह कुंड भी कहा जाता है। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह, पांडवों और कौरवो के लिए श्रद्धेय थे, लेकिन महाभारत के युद्ध में उन्होने कौरवों का साथ दिया था। शास्त्रों के अनुसार, उन्हे एक वरदान मिला था कि जब अपनी इच्छाशक्ति के अनुसार जब तक चाहें जी सकते है और जब वह मरना चाहें तो मर सकते है। वह एक अजेय योद्धा थे और उन्हे पांडवों से विशेष लगाव था लेकिन फिर भी वह पांडवों के खिलाफ युद्ध में लड़े। आपको बताते चलें कि यहां पास में ही एक छोटा सा मंदिर है जहां वर्तमान में बनी हुई सीढि़यों को पुनर्निर्मित किया जा रहा है।
Photo Courtesy: Giridharmamidi
भद्रकाली मंदिर
यह मंदिर, महाभारत के पांडवों से जुड़ा है। यह मंदिर थानेश्वर के उत्तर में स्थित है। किंवदंतियों के अनुसार, पांडव भाईयों ने कौरवों के साथ अपनी अंतिम लड़ाई से पहले इसी मंदिर में तपस्या की थी। भद्रकाली मंदिर, मां काली को समर्पित है और यहां उनके कई रूपों को दर्शाया गया है। इस मंदिर को शक्तिों पीठों में से एक माना जाता है - इसी जगह पर माता सती का निचला अंग गिर गया था। हिंदू मान्यता के अनुसार, शक्ति पीठ वह स्थल होते है जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। प्रत्येक वर्ष, इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते है, उन सभी के लिए मंदिर में बना पक्की मिट्टी का घोडा, देवता के सम्मान का प्रतीक चिन्ह् है जिस पर लोगों की आस्था और श्रद्धा है।
ब्रह्मा सरोवर
ब्रह्मा सरोवर टैंक, थानेसर में स्थित एक पवित्र जलाशय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुरूक्षेत्र को भगवान ब्रह्मा द्वारा विशाल यज्ञ से निर्मित किया गया था। यहां भगवान शिव का एक मंदिर भी है जहां एक पुल के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। यह टैंक, नबंवर में गीता जयंती के दौरान सुंदर दिखता है और दिसम्बर के शुरू में यहां दीपदान का आयोजन किया जाता है जिसमें पानी में जलती हुए दीपों को बहाया जाता है। कहा जाता है कि इस कुंड में डुबकी लगाने से उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना पुण्य अश्वमेघ यज्ञ को करने के बाद मिलता है। यह कुंड, 1800 फीट लम्बा और 1400 फीट चौडा है। इस कुंड में स्नान करने के लिए सूर्य ग्रहण और गीता जंयती के दौरान काफी भीड होती है। नबंवर में गीता जंयती के दौरान और दिसम्बर में दीपदान के समय, यहां प्रवासी पक्षी भारी संख्या में आते है।
Photo Courtesy: Ratnadeep Chaskar
अरूनाई मंदिर
यह मंदिर एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो अम्बाला रोड़ पर पहोवा से 6 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर, महाभारत के समय से सम्बंधित है, जो दो साधुओं विश्वामित्र और वशिष्ठ से जुडा हुआ है। यह तीर्थ स्थल इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां दो नदियां सरस्वती और अरूणा भी मिलती है। इस मंदिर के महत्व के बारे में महाभारत और वामन पुराण में उल्लेख किया गया है, वर्तमान में यह तीर्थ संगमेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में एक छोटा सा कुंड भी है और हर साल यहां हजारों पर्यटक दर्शन करने आते है।
ज्योतिसार
ज्योतिसार, शायद दुनिया के सबसे सम्माननीय तीर्थ केंद्रों में से एक है। ज्योतिसार में ही भगवान कृष्ण ने कुरूक्षेत्र के मैदान पर अर्जुन को भगवद् गीता का दिव्य ज्ञान दिया था। यह वह स्थल है जहां से लडाई की शुरूआत हुई थी और युद्ध को प्रारम्भ करने की घोषणा की गई थी। ऐसा माना जाता है कि इस स्थल के बारे में सर्वप्रथम आदि शंकराचार्य ने पता लगाया था, जब वह 9 वीं शताब्दी में हिमालय की यात्रा पर जा रहे थे। यहां कश्मीर के एक शासक ने भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनवाया था, जिसे 1850 ई. में धार्मिक महत्व दिया गया। आपको बताते चलें कि ज्योतिसार में हर शाम को लाइट और सांउड का आयोजन किया जाता है।
Photo Courtesy: Vjdchauhan
कैसे जाएं कुरूक्षेत्र
फ्लाइट द्वारा - कुरूक्षेत्र का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट चंडीगढ एयरपोर्ट है जो 85 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां से पर्यटक, कुरूक्षेत्र तक के लिए टैक्सी हॉयर कर सकते है या फिर बस या पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जा सकते है।
ट्रेन द्वारा - कुरूक्षेत्र में रेलवे स्टेशन है जिसे कुरूक्षेत्र जंक्शन के नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रेलवे स्टेशन है जहां से देश के सभी भागों के लिए ट्रेन मिल जाती है।
सड़क मार्ग द्वारा - कुरूक्षेत्र, सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह, देश के अन्य हिस्सों से जुडा हुआ है। यहां के पेहोवा, लादवा, शाहबाद, अम्बाला, थानेसर, कैथल आदि स्थानों पर आसानी से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 1 और राज्य हाईवे 5 भी कुरूक्षेत्र से होकर गुजरते है।