भारतीय संस्कृति का 'कला' से साथ गहरा रिश्ता रहा है। चाहे बात लोक नृत्य-संगीत की हो या फिर अद्भुत चित्रकारी की। 'नेटिव प्लानेट' के इस खास खंड में जानिए, बिहार प्रांत के 'मधुबनी नगर' के बारे में, जिसकी प्राकृतिक कला का पूरा विश्व लोहा मान रहा है। जिसकी खूबसूरत चित्रकारी, रंगोली से उतर कर कपड़ों, दीवारों के बाद अब कागज पर भी आ गई आई है।
'मिथिला' की औरतों द्वारा शुरू की गई यह पहल, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर रही। आइए जानते हैं पर्यटन के लिहाज से 'मधुबनी' आपके लिए कितना खास है।
मधुबनी चित्रकला
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मधुबनी मुख्यत: अपनी चित्रकला के लिए जाना जाता है। जिसकी शुरुआत पहले मिथिला की औरतों द्वारा घर के द्वार पर बनाई जाने वाली रंगोली के रूप में हुई थी। जो धीरे-धीरे अब आधुनिक रूप ले रही है। अब यह चित्रकारी कपड़ों के अलावा घर की दीवारों व कागज पर भी की जाती है। यहां के रेलवे स्टेशन से ही मधुबनी कला को देखने की शुरुआत हो जाती है, जहां पूरी दीवारें, मधुबनी कलाकृतियों से सराबोर हैं। विदेशी सैलानियों द्वारा इस अद्भुत कला को खूब पसंद किया जाता है।
मधुबनी कला का इतिहास
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मधुबनी कला का इतिहास श्री राम काल से बताया जाता है। ऐसे खूबसूरत चित्र मिथिला के राजा जनक ने अपनी बेटी सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों द्वारा बनवाए थे। कहा जाता है, इस कला पर समाज के उच्च वर्ग का ही अधिकार था, पर समय के साथ-साथ ये सीमाएं दूर हो गईं। मिथिलांचल के कई गांव इस कला में दक्ष हैं। खासकर महिलाएं इस कला में ज्यादा रूची दिखाती हैं, लेकिन अब पुरुष भी इस कला में शामिल हो गए हैं।इन पहाड़ी स्थलों से जुड़ा है, महाभारत काल का रहस्यमयी इतिहास
नाम के पीछे की कहानी
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प्राचीन काल में मधुबनी अपने वनों में पाए जाने वाले मधु (शहद) के लिए काफी प्रसिद्ध था, इसलिए इस जगह का नाम (मधु+वन) मधुबनी रख दिया गया। जबकि कुछ लोगों का मानना है, कि मधुबनी शब्द मधुर+वाणी से बना है, क्योंकि यहां की मुख्य भाषा मैथिली है, जिसे काफी मधुर व सरस माना जाता है।
मधुबनी चित्रकला की विशेषता
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मधुबुनी चित्रकला दो तरह की होती हैं, एक भित्ती चित्र और दूसरा अल्पना। चित्रों में देवी-देवताओं के साथ प्राकृतिक दृश्यों जैसे पेड़-पौधे, सूर्य-चंद्रमा आदि को शामिल किया जाता है। और सबसे खास बात, इन चित्रों को बनाने में प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है। जैसे हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंगे के लिए पीपल के पेड़ की छाल आदि। यहां तक की रंगों के लिए दूध तक का प्रयोग किया जाता है। चित्रकारी के लिए बांस की पतली नोकदार कलम व माचिस की तीली का इस्तेमाल किया जाता है। रंगों की पकड़ मजबूत करने के लिए बबूल की गोंद का प्रयोग किया जाता है।गौतम बुद्ध से जुड़े इस स्थल का इतिहास नहीं जानते होंगे आप
घूमने लायक जगहें - राजनगर
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राजनगर, मधुबनी जिले का एक ऐतिहासिक स्थल है। जो किसी जमाने में दरभंगा की उप-राजधानी था। इस जगह को बसाने का श्रेय महाराजा रामेश्वर सिंह को जाता है, जिन्होंने यहां एक भव्य नौलखा महल का भी निर्माण करवाया । इस महल के अंदर देवी काली का एक भव्य मंदिर है। कहा जाता है, यह महल प्राकृतिक आपदा का बुरी तरह शिकार हुआ, अब यहां बस महल का भग्नावशेष ही बचा हुआ है। लेकिन अभी भी यह छतिग्रस्त राजमहल और इसका परिसर देखने लायक हैं।
बलिराज गढ़
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आज इस अवस्था में मौजूद हैं, महाभारत काल के ये शहर
गिरिजा - शिव मंदिर
मधुबनी से जुड़े कई तार पौराणिक काल की ओर इशारा करते हैं। कहा जाता है, माता सीता फूल तोड़ने के लिए नित प्रात: फुलवाड़ी, गिरिजा जाया करती थीं, जिसका वर्तमान नाम फुलहर है। कहा जाता है गिरिजा में भगवान शिव का एक मंदिर अवस्थित था, जो आज भी उस रूप में मौजूद है। मान्यता है कि प्रभु राम ने माता सीता को पहली बार यहीं गिरिजा में देखा था।
अगर आप चाहें तो उपरोक्त स्थलों के अलावा यहां स्थित कई और मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं, जिसमें कल्याणेश्वर महादेव मंदिर, डोकहर राज राजेश्वरी मंदिर, भवानीपुर, कोइलख, गोसाउनी घर आदि शामिल हैं।
कैसे पहुंचे
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मधुबनी आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं, यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पटना है, रेल मार्ग के लिए आप मधुबनी और राजनगर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। मधुबनी, सड़क मार्ग द्वारा बिहार के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। इसलिए आप सड़क मार्ग के द्वारा भी यहां तक पहुंच सकते हैं।