हमने कई सारी प्रतियोगिताएं देखी हैं, रंगोली प्रतियोगिता, सैंड आर्ट प्रतियोगिता और कई सारी! पर क्या कभी आपने मंदिर बनाने की प्रतियोगिता के बारे में सुना है? जी हाँ आपने बिल्कुल सही सुना, मंदिर बनाने की प्रतियोगिता भी हमारे देश में कई सालों पहले आयोजित की जाती थीं। और उसका जीता जागता उदहारण है, मालुती मंदिर जो दर्शाते हैं कि हमारे राजाओं के कैसे शाही और भव्य शौक हुआ करते थे। और ये बिल्कुल भी साधारण प्रतियोगिताएं नहीं हुआ करती थीं, बल्कि इनमें कई जटिल कार्यों को पूरा किया जाता था। बाज बसंत राजवंश के शासकों ने अपनी कुल देवी मौलाक्षी के सम्मान में मालुती मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया था।
मालुती मंदिर
Image Courtesy: Rangan Datta Wiki
मालुती मंदिर का समूह झारखण्ड के मालुती गाँव में स्थित है। इस गाँव की कहानी हमें राजा बसंत के राज्य में कई सालों पहले ले जाती है जो एक धार्मिक पुरुष हुआ करते थे और महलों के जगह उन्हें मंदिर बनाने का शौक था। दिलचस्प बात तो यह है कि उनके कबीले के लोगों को भी मंदिर बनाने का सबसे ज़्यादा शौक था। इसलिए वे चार बराबर कबीलों में बंट गए और एक दूसरे के विरुद्ध मंदिर बनाने की प्रतिस्पर्द्धा प्रारम्भ कर दी। इस अजीब प्रतियोगिता के दौरान 108 मंदिर बन कर तैयार किए गए।
मालुती मंदिर
Image Courtesy: Rimilbadal
दुर्भाग्य की बात है कि आज ये मंदिर खतरे में पड़े विरासत स्थलों की सूचि में शामिल हैं। आज इनकी मरम्मत और देखभाल ठीक से न होने की वजह से 108 मंदिरों में से 36 मंदिर ध्वस्त हो चुके हैं। हालाँकि 72 मंदिर अभी भी मौजूद हैं पर इनमें से कई बुरी हालत और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद हैं।
मालुती मंदिर
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मालुती मंदिरों की रचना
मालुती मंदिरों को बनाने में एक खास तरह की शैली का उपयोग किया गया था और इसके साथ ही साथ ये मंदिर टेराकोटा से बने हुए हैं। ये मालुती टेराकोटा मंदिर आकार में भले ही छोटे हैं पर इनकी कलात्मकता देखते ही बनती है। हर मंदिर में हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं जैसे रामायण और महाभारत को खोद कर दर्शाया गया है। यहाँ की मुख्य देवी मौलाक्षी के मंदिर के अलावा, यहाँ अन्य मंदिर भी स्थापित हैं जो भगवान शिव जी, विष्णु जी, माँ दुर्गा, माँ काली और कई अन्य देवी देवताओं को समर्पित हैं।
मालुती मंदिर
Image Courtesy: Rimilbadal
इन मंदिरों की वास्तुकला किसी अन्य प्रसिद्द मंदिरों की वास्तुशैली से बिलकुल भी नहीं मिलती हैं। मालुती मंदिरों में स्थानीय वास्तुकला के विभिन्न शैलियों का संलयन है। मंदिर को जिन कारीगरों ने बनाया था वे बंगाल क्षेत्र के थे जिन्होंने मंदिरों के निर्माण के लिए एक नई और ताज़ी कला और शैली का उपयोग किया था। इसलिए ये झारखण्ड के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक हैं।
मालुती मंदिर
Image Courtesy: Moongo.in
मालुती गाँव
झारखण्ड का प्राचीन गाँव मालुती, चिला नदी के किनारे दुमका में बसा हुआ है। इस गाँव का सबसे प्रमुख त्यौहार है नवरात्रि का त्यौहार यानि दुर्गा पूजा का त्यौहार। काली पूजा के शुभ महोत्सव में यह जगह 100 बकरियों की बलि चढ़ाने के लिए भी प्रसिद्द है। यह मालुती गाँव की बहुत पुरानी परंपरा है, हालाँकि कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध भी किया है। मालुती हमारे देश की एक भव्य विरासत है, पर संरक्षण की कमी से यह बहुत जल्दी-जल्दी लुप्त होती जा रही हैं। इसलिए आज यह 'गायब होती जा रही विरासतों' की सूचि में शामिल है।
वास्तुकला के ऐसे शानदार नमूनों को देखना और इनकी सुंदरता को कैद करना अपने में ही एक उत्साहिक कार्य है। ऐसी आकर्षक और ऐतिहासिक जगह की सैर करना तो एक बार ज़रूरी ही है।
मालुती मंदिर
Image Courtesy: Anirbang80
मालुती गाँव पहुँचे कैसे?
मालुती झारखण्ड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर बसा है। यह शिकारीपाड़ा गाँव के नज़दीक रामपुरहाट क्षेत्र से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप दुमका से रामपुरहाट की बस यात्रा द्वारा यहाँ पहुँच सकते हैं। रामपुरहाट रेलवे स्टेशन से आपको कोई भी स्थानीय गाड़ी मालुती गाँव तक के लिए मिल जाएगी।
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