भारत में देवी-देवताओं के अनेकों मंदिर है। सभी की अपनी-अपनी एक अलग विशेषता है। इनमें से ही एक है बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर। पहाड़ों की चढ़ाई के साथ-साथ प्राचीन स्मारक व जंगलों के बीच से होकर गुजरते रास्तों का संकलन है मां का दरबार। भारतीय पुरातत्व विभाग के साथ पुराणों व ग्रंथों में भी माता के इस विशाल मंदिर को सबसे पुरानतम मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात है कि यहां का संरक्षक एक मुस्लिम परिवार है, जो गंगा-यमुना तहजीब को दर्शाता है। लेकिन इसके विपरीत अगर वर्तमान माहौल को देखे तो यह बिल्कुल ही उल्टा है।
माता को दी जाती है रक्तहीन बलि
यहां की सबसे खास बात है, माता को दी जाने वाली बकरे की बलि। लेकिन, ये बलि बकरे की जान लेकर नहीं ली जाती है। जी हां, बलि के दौरान बकरे को पहले माता के मूर्ति के पास ले जाया जाता है और उस पर अक्षत (चावल के दाने) फेंका जाता है। जैसे ही अक्षत उस पर पड़ता है तो बकरा मूर्छित हो जाता है फिर पूजा-पाठ के बाद फिर उस पर अक्षत फेंका जाता है और इस बार बकरा खड़ा हो जाता है और फिर उसे छोड़ दिया जाता है। देश के किसी भी मंदिर में इस प्रकार की परंपरा नहीं है और ये परंपरा यहां सैकड़ोंं वर्षों से चली आ रही है।
मंदिर में चार प्रवेश द्वार है, जिसमें से एक को बंद कर दिया गया है। इसमें से मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है। मंदिर के बीच में एक पंंचमुखी शिवलिंग है (विनितेश्वर महादेव), जो बेहद चमत्कारी है। दिन ढलने के साथ महादेव के इस शिवलिंग का रंग भी बदलता रहता है। इस मंदिर परिसर में एक पेड़ भी स्थित है, जिसकी अपनी एक अलग मान्यता है। माता की अद्भुत छटा देखने के लिए दूर-दूर से भक्तगण आते हैं और माता की भक्ति में लीन हो जाते हैं।
नवरात्रि में लगती है भारी भीड़
नवरात्रि के दिनों में तो वैसे माता के सभी मंदिरों में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है, लेकिन कैमूर के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर स्थित मांं मुंडेश्वरी के दरबार की बात ही निराली है। कहा जाता है कि माता की मूर्ति पर आप ज्यादा देर तक नजर नहीं टिका सकते। यह पत्थर से बना हुआ काफी भव्य व अष्टकोणीय मंदिर है। यहां भक्तों के द्वारा मांगी गई मन्नत पूरी हो जाती है और तब लोग यहां आकर बकरे की बलि देते हैं।
मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी व वहां उपस्थित कुछ लोगों के द्वारा बताया गया कि करीब 2000 सालों से यहां लगातार पूजा-अर्चना की जा रही है। कहा जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़ने के प्रयास भी किए गए, जो असफल रहे। इस मंदिर को तोड़ने में लगाए गए मजदूरों के साथ विचित्र घटनाएं होने लगी, जिसके कारण वे वहां से भाग निकले। तभी से इस मंदिर की चर्चा होने लगी और लोगों के बीच यह मंदिर अद्भुत व चमत्कारी मंदिर के रूप में सामने आया।
कैसे पहुंचें मां मुंडेश्वरी के दरबार में
माता मुंडेश्वरी के मंदिर पहुंंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड (मोहनियां) है। वहां से माता का दरबार करीब 25 किलोमीटर दूर है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा वाराणसी में स्थित है, जो यहां से करीब 90 किलोमीटर है। इसके अलावा बस या निजी वाहन से भी पहुंचा जा सकता है।