औरंगाबाद जिसे महाराष्ट्र की पर्यटन राजधानी के नाम से भी जाना जाता है का शुमार भारत के सबसे खूबसूरत शहरों में है। औरंगाबाद को दरवाज़ों का शहर भी कहते हैं। आपको बताते चलें कि मुग़ल साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली बादशाहों में से एक औरंगज़ेब के नाम पर इस शहर का नाम औरंगाबाद पड़ा। अगर आप औरंगाबाद का गहनता से अध्ययन करें तो आपको मिलेगा कि इस सहारा में ऐसा बहुत कुछ है जिसकी वजह से देश दुनिया के लाखों पर्यटक इस शहर की ओर आकर्षित होते हैं। पढ़ें : क़ुतुब मीनार से जुड़े वो तथ्य जो आपने पहले कभी नहीं सुने होंगे
औरंगाबाद, महाराष्ट्र की आधिकारिक पर्यटन पूंजी होने के कारण घूमने के लिए बेहतरीन शहर है। औरंगाबाद की खूबसूरती और यहां मौजूद इमारतों की वास्तुकला ऐसी है कि यहां आने के बाद एक पर्यटक इस शहर की तरफ़ अपने आप ही मोहित हो उठेगा।
आइये जाने की औरंगाबाद में ऐसा क्या है जो एक पर्यटक को दीवाना बना देता है।
बीबी का मकबरा
औरंगाबाद से 5 किमी दूर स्थित इस मकबरे को औरंगजेब के बेटे राजकुमार आजम शाह ने अपनी मां बेगम राबिया की याद में 1678 में बनवाया था।इस मकबरे के वास्तुकार का नाम अता उल्लाह था जिसने ताजमहल को कॉपी करने की कोशिश की थी लेकिन वह विफल रहा।
पनचक्की
औरंगाबाद में पनचक्की यानि पानी की मिल है।शहर में नदी का पानी मिट्टी के पाइप के माध्यम से लगभग 6 दूर लाया जाता है और स्थानीय लोगों के अनाज पीसने के काम में आता है। एक जगह पर यह पानी झरने के रूप में गिरता है।
सलीम अली झील और पक्षी अभयारण्य
सलीम अली झील जिसे सलीम अली का तालाब भी कहा जाता है दिल्ली गेट के करीब और हिमायत बाग की विपरीत दिशा पर स्थित एक झील है। यहां आने वालों के लिए झील में बोटिंग का प्रबंध किया गया है। यहां आपको सबसे ज्यादा पर्यटक मॉनसून और सर्दियों के दौरान दिखेंगे।
खुलदाबाद
यह जगह मुस्लिम धर्म का पाक स्थल है जहां दो मुस्लिम सतों बरहान-उद-दीन और जैन-उद-दीन का निवास था और अब उनका मकबरा भी यहीं बना हुआ है।इस जगह आने के लिए तीन दरवाजे है-लंगदा,पंगरा और नागरखाना।
दौलताबाद
दौलताबाद, औरंगाबाद से 16 किलोमीटर दूर स्थित है जो तुगलक वंश के राजाओं की राजधानी हुआ करता था । साथ ही इसे समृद्धि के शहर के नाम से भी जाना जाता था। आज ये शहर पूर्ण रूप से वीरान है और यहां केवल आगंतुकों की मौजूदगी देखी जा सकती है।
अजंता और एलोरा गुफाएं
अजंता और एलोरा गुफाएं भी यहां से ज्यादा दूर नहीं हैं और आप यहां अवश्य घूमने आएं। ये दोनों ही गुफाएं आज महत्वपूर्ण ऐतिहासिक केन्द्र है। अजंता की गुफाएं लगभग 200 साल ईसा पूर्व की बनी हुई है। इन गुफाओं में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के चित्र, मूर्ति व अन्य कलाकृति लगी हुई है। अजंता की गुफाओं को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया है।