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नालंदा - दीवारें बोलती हैं!

दीवारें बोलती हैं। विश्व के सबसे पहले विश्वविद्यालय, नालंदा के भग्नावशेष की दीवारें। चीख चीख कर बोलती हैं। मिटाने वाला क्या मिटा पाया!? बचाने वाला क्या बचा पाया!? बनाने वाले ने फिर क्यूं नहीं बनाया!?

नालंदा भग्नावशेष की दीवारें पंचम स्वर में गाती हैं अतीत के गर्वगीत। ये खंडहर आज भी करते हैं सहस्त्राब्दि से संवाद। ये दीवारें रोती भी हैं अपने नहीं, अपने संतति के दुर्भाग्य पर। महीनों तक आग की तपिश और सदियों तक जमींदोज होने के दर्द के बावजूद आज भी ये दीवारें सर उठाकर खड़ी हैं। इन दीवारों पर अब छत नहीं, पाटलिपुत्र मगध का स्वर्णिम अतीत है

ईसा की पांचवीं शताब्दी में गुप्तकाल में लोकप्रिय शासक कुमारगुप्त प्रथम द्वारा बनवाए गए नालंदा विश्वविद्यालय में दर्शन, न्याय, अर्थशास्त्र, स्थापत्यकला, खगोल शास्त्र, गणित, ज्योतिष और साहित्य का विद्याध्ययन किया जाता था। यहाँ भारत के अतरिक्त जापान, कोरिया, चीन, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की से भी छात्र आते थे। पत्थरों के छोटे छोटे प्लेटफॉर्म अब भी हैं जिसपर खड़े होकर आचार्य पढ़ाते थे। शिष्य आंगन में बैठकर पढ़ते थे। बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय के इस केंद्र में बौद्ध हीनयान समेत अन्य धर्मों की शिक्षा दी जाती थी।

111 छात्रावासों में रहते थे 10 हजार छात्र

111 छात्रावासों में रहते थे 10 हजार छात्र

चीनी यात्री ह्वेन सांग की डायरी के मुताबिक यहां छोटे बड़े 111 छात्रावासों में छात्रों के रहने की व्यवस्था थी। दस हजार छात्रों को पढ़ाने के लिए करीब दो हजार शिक्षक थे। अनेक व्याख्यान कक्ष और करीब तीन सौ कमरे का छात्रावास। सबसे बड़ा छात्रावास नौ मंजिलों का था। मुंडेरों पे रोशनदान बने थे। कक्ष के द्वार की दीवारों में दीपक जलाने के लिए जगह थी और कक्ष के भीतर पुस्तकों के लिए दीवारों में आले/ताखे बने थे। अब तक की खुदाई में केवल आठ छात्रावास ही निकले हैं। हर प्रांगण में कुआं तथा स्नानागार बने थे और जल निकासी के लिए ढलुआ नाले बने थे।

सात वर्ग किलोमीटर का प्रांगन था जिसमें से अभी केवल एक वर्ग किलोमीटर की खुदाई हो पाई है। बीच में एक सीध में बौद्ध मंदिर बने हुए थे। अब तक हुए अन्वेषण में दीवार, सीढ़ी, कक्ष, मंदिर के अतिरिक्त दो तरह के चबूतरे बहुतायत से मिले हैं। चौकोर चबूतरे ध्यान करने के लिए बने हुए थे और गोल चबूतरे वास्तव में यहां निर्वाण प्राप्त करने वाले आचार्य और विद्यार्थियों के समाधि हैं।

बख्तियार खिलजी ने लगायी थी आग

बख्तियार खिलजी ने लगायी थी आग

1202 ई. में बख्तियार खिलजी की सेना ने पाटलिपुत्र को लूटने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया था। लकड़ियों के बने चौखट, दरवाजे, खिड़कियां सब जलकर राख हो गए। उस जलन का काला निशान अभी तक दरवाजे के पास बने पक्की दीवारों की ईंटों पर है। कहते हैं कि इस आग में विश्वविद्यालय की पुस्तकें/तालपत्र छः महीने तक जलते रहे थे।

इन खंडहरों के पास ही एक पुरातत्त्व संग्रहालय है। जहां आप खुदाई में प्राप्त सामग्रियां देख सकते हैं। आप देख सकते हैं करीब हज़ार साल पहले जला हुआ चावल। वो बड़े से घड़े के आकार का संग्राहक पात्र जिसमें बौद्ध भिक्षुओं, आचार्यों, अंतेवासियों ने रखा था चावल नित्य भोजन के लिए। बख्तियार खिलजी की लगाई आग में वो चावल जलकर कोयला हो गया।

यदि आप नहीं जानते कि आप क्या थे, क्या हो गए या क्या कर दिए गए, तो एक बार नालंदा जरूर जाइए। नालंदा के भग्नावशेष की दीवारें चीख चीख कर अपनी कहानी कहेगी। नालंदा के खंडहर प्राचीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्राचीर के समीप ही ह्वेनसांग का संग्रहालय है जिसमें उनके जीवन से जुड़ी सामग्रियां और साक्ष्य संभालकर रखें गए हैं।

नालंदा के आस पास

नालंदा के आस पास

नालंदा से करीब 12 किलोमीटर पर स्थित राजगीर में महाभारत कालीन अवशेष पाए गए हैं। यह पौराणिक नगर जरासंध की राजधानी थी। बाद में बिम्बिसार यहां के शासक हुए।

सिलांव नालंदा के पास स्थिति एक उपनगर है जो बिहार की प्रसिद्ध खाजा मिठाई के लिए प्रसिद्ध है।

प्रसिद्ध जैन तीर्थ पावापुरी नालंदा से करीब 25 किलोमीटर दूर है।नालंदा जिले का मुख्यालय शहर बिहारशरीफ का बुखारी मस्जिद और इब्राहिम बाया का मकबरा पर्यटकों को आकर्षित करता है।

नालंदा से केवल तीन किलोमीटर पर ही स्थित है कुंडलपुर गांव जहां जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थल है।

बड़गांव का सूर्य सरोवर नालंदा से महज डेढ़ किलोमीटर पर अवस्थित है। यह बिहार के महापर्व छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

बख्तियारपुर पटना से नालंदा के रास्ते में आता है। यह पटना से नालंदा का प्रवेशद्वार है और इस बात की याद दिलाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय को तहस नहस करने वाला आक्रांता बख्तियार खिलजी इसी मार्ग से पाटलिपुत्र से नालंदा गया था।

नालंदा कैसे पहुंचे

नालंदा कैसे पहुंचे

नालंदा सड़क और रेलमार्ग से देश भर से जुड़ा हुआ है। नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीर से करीब दो किलोमीटर दूरी पर ही नालंदा स्टेशन है। मुख्य स्टेशन राजगीर है। यदि वायुमार्ग की बात करें तो यह पटना के जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लगभग 90 किलोमीटर और बोध गया स्थिति गया अंतरराष्ट्रीय 111 किलोमीटर की दूरी पर है।

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