भारत की प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल और आश्रमों से शुरू होती है, जिसके बाद भवननुमा विश्वविद्यालयों का दौर आया। भारतीय उपमहाद्वीप प्राचीन काल से ही शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। जहां वैदिक शिक्षा के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण विषयों को भी पढ़ाया जाता था। इतिहासकारों की मानें तो अधिकतर प्राचीन विश्वविद्यालय बिहार और बंगाल क्षेत्र के आसपास विकसित हुए। शिक्षा के क्षेत्र में भारत के पाल राजाओं की अहम भूमिका मानी जाती है।
इन राजाओं ने कई प्राचीन विश्वविद्यालयों और मठों का निर्माण करवाया था। जो बौद्ध धर्म के साथ-साथ सनातन और जैन धर्म से जुड़ी शिक्षाओं का प्रमुख केंद्र माने जाते थे। प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में ज्यादातर लोग सिर्फ नालंदा को ही जानते हैं। लेकिन आज हम आपको भारत के उन प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में बताने जा रहे हैं जो नालंदा के समकालीन और बाद के वर्षों में विकसित हुए।
तक्षशिला विश्वविद्यालय
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भले ही तक्षशिला आज भारत का हिस्सा नहीं पर ऐसा नहीं है कि प्राचीन शिक्षा का केंद्र तक्षशिला भारत से पूरी तरह से अलग हो चुका है। भारत के प्राचीन शिक्षण संस्थानों में नालंदा के बाद तक्षशिला का नाम आता है, जिसकी स्थापना लगभग 2700 वर्ष पहले किया गया था।
आज तक्षशिला पाकिस्तान के क्षेत्र में आता है। कहा जाता है उस दौरान इस विश्वविद्यालय में 10500 से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ा करते थे। जो विश्व के अलग-अलग कोनों से आकर धर्म के साथ विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करते थे। नालंदा की ही तरह तक्षशिला एक प्रमुख वैदिक शिक्षा का केंद्र था, जहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म से जुड़े विद्यार्थी भी शिक्षा ग्रहण किया करते थे।
विक्रमशीला विश्वविद्यालय
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नालंदा और तक्षशिला के अलावा विक्रमशीला विश्वविद्यालय का नाम भी प्राचीन शिक्षण संस्थानों में आता है। इस विश्वविद्यालय का निर्माण पाल वंश के राजा धर्म पाल द्वारा किया गया था। 8 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच यह भारत में खास बौद्ध शिक्षा के केंद्रों में गिना जाता था।
वर्तमान में अब इस विश्वविद्यालय का कोई अस्तित्व नहीं है। इतिहासकारों के अनुसार यह बिहार के भागलपुर शहर के आसपास विकसित हुआ था। यह भी भारत के प्राचीन बड़े विश्वविद्यालयों में गिना जाता है, जहां लगभग 1000 विद्यार्थी और 100 शिक्षक थे। इतिहासकारों का मानना है कि इस विश्वविद्यालय में तंत्र शास्त्र भी पढ़ाया जाता था।
वल्लभी विश्वविद्यालय
वल्लभी विश्वविद्यालय आधुनिक गुजरात के सौराष्ट्र में विकसित हुआ। जो लगभग 600 सालों का एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा का केंद्र रहा। चीनी यात्री ईत-सिग के अनुसार यह उस समय का प्रमुख शिक्षा का केंद्र था। यहां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आया करते थे।
यह विश्वविद्यालय पढ़ाई के क्षेत्र में इतना आगे था कि इसे बिहार के नालंदा का प्रतिद्वंद्वी समझा जाने लगा था। कहा जाता है कि गुनामति और स्थिरमति नाम के दो प्रसिद्ध बौद्ध विद्वानों ने इसी विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की थी।
उदांत पुरी विश्वविद्यालय
उदांतपुरी विश्वविद्यालय प्राचीन मगध का प्रमुख शिक्षा का केंद्र था। जहां दूर-दूर से विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। यह विश्वविद्यालय पाल वंश के राजाओं द्वारा बनवाया गया था, जिसमें लगभग 1200 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। यह विश्वविद्यालय लगभग 400 सालों तक प्राचीन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा।
उदांतपुरी विश्वविद्यालय के निर्माण का मुख्य उद्देश्य बौद्ध शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना था। इतिहासकारों की मानें तो नालंदा के बाद यह भारत का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय था।
जगद्दल महाविहार
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जगद्दल महाविहार मुख्य तौर पर एक बौद्ध मठ था जो कभी भारत के बंगाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था। वर्तमान में यह क्षेत्र बांग्लादेश के अंतर्गत आता है। कहा जाता है जगद्दल महाविहार का निर्माण पाल वंश के बाद के राजाओं ने करवाया था। जो पाल राजाओं द्वारा बनाई गई विशाल संरचनाओं में गिना जाता है। इतिहासकारों की मानें तो पाल वंश के राजा रामपाल ने लगभग 50 बौद्ध विहारों का निर्माण करवाया था। जिसमें जगद्दल विशेष स्थान रखता है।
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय
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पुष्पगिरी विश्वविद्यालय तीसरी शताब्दी के दौरान भारत के वर्तमान उड़ीसा राज्य में विकसित किया गया था। यह प्राचीन विश्वविद्यालय लगभग 800 सालों तक अपने चरम पर रहा। नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद पुष्पगिरी शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। जहां दूर-दूर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आया करते थे।
यह विश्वविद्यालय उड़ीसा की तीन पहाड़ियों (ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी) पर फैला हुआ था। इतिहासकारों की मानें तो इस विश्वविद्यालय का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था। क्योंकि यहां से सम्राट अशोक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त किए गए हैं।
सोमपुरा विश्वविद्यालय
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सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय भी भारत के पाल राजाओं को जाता है। यह विश्वविद्यालय लगभग 400 सालों तक प्राचीन शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहा। जो लगभग 27 एकड़ के क्षेत्र में फैला था। यह विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा से साथ-साथ सनातन धर्म और जैन धर्म एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। साथ ही विश्व की चुनिंदा बौध मठों में भी शामिल है।
बता दें कि इस विश्वविद्यालय के महत्व को देखते हुए यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है। वर्तमान में सोमपुरा बांग्लादेश का हिस्सा है।