अब तक आप राजस्थान के कई किलों की सैर कर चुके होंगे। वहाँ के ऐतिहासिक किलों में नाचते मोर और वहाँ के रेगिस्तान के आपने भरपूर मज़े लिए होंगे। पर क्या आपको पता है कि, राजस्थान में एक विशाल झील भी है। नहीं पता? तो चलिए कोई बात नहीं, आज हम आपको उसी झील की यात्रा पर लिए चलते हैं, जहाँ की खूबसूरती और इतिहास जान आपका मन डोल उठेगा उस झील की यात्रा के लिए।
जयसमंद झील, राजस्थान की सबसे बड़ी झील और एशिया के दूसरे नंबर की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। महाराजा जय सिंह द्वारा बनवाई गयी इस झील के किनारे निर्मित संगमरमर की छतरियाँ इस झील की खूबसूरती पर चार चाँद लगाते हैं। कहा जाता है कि गर्मी के मौसम में महारानियाँ यहीं आकर रहती थीं। झील के किनारे ही एक वन्यजीव अभ्यारण्य भी है, जहाँ वन्यजीवों का खुला विचरण यहाँ आए पर्यटकों को और उत्साहित करता है।
जयसमंद झील
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यह विशालतम झील उदयपुर से 40 कि.मी. दूर दक्षिण पूर्व में है। सिंचाई के लिए इस झील से दो नहरें निकाली गई हैं।
अरावली की गोद में स्थित मानव निर्मित जयसमंद झील का निर्माण मेवाड़ के महाराणा जयसिंह ने सन् 1691 ई में कराया था। पहले वहां एक छोटा पोखर था, जिसे ढेबर झील कहा जाता था। कहते हैं कि महाराणा जयसिंह का बचपन का नाम ढेबर था और इस झील का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया था। अरावली की एक घाट को दीवार द्वारा चिनवाकर इस छोटे पोखर को विशाल झील में बदला गया।
महाराणा जयसिंह ने इस भव्य झील का नाम जयसमंद (जयसमुद्र) रखा और इसके किनारे कई भव्य महलों का निर्माण करवाया जिनमें उनकी सबसे छोटी रानी कोमलदेवी का महल और हवा महल शामिल हैं।
जयसमंद झील
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कई दस्तावेज़ों के अनुसार इस झील में 9 नदियां और 99 नालों का पानी आता है। झील के बीच तीन टापू भी हैं, जिन पर कभी मीणा और साधु समुदाय के लोग रहते थे। यह विश्व-विख्यात झील जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य का एक अंग होने की वजह से, झील तथा उसके टापू और पृष्ठभाग में मौजूद अरावली पर्वत-माला असंख्य जलपक्षियों को आकर्षित करते हैं।
इसके निर्माण की कथा
जयसमंद झील के निर्माण हेतु महाराणा जयसिंह को 330 मीटर लंबा और 35 मीटर चौड़ा बांध बनवाना पड़ा, जो समुद्र की सतह से 320 मीटर ऊंचा है। जब जयसमंद झील पूरी भर जाती है, उसमें 6 करोड़ घन मीटर पानी समाता है, जो 2,000 वर्ग मील में उगी चावल की फसल को सींच सकता है। बांध पास की बखाड़ी खानों से लाए गए सफेद संगमरमर जैसे पत्थर से बना है।
जयसमंद झील के किनारे बना संगमरमर का हाथी
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बांध के सबसे ऊंचे स्थान पर नर्मदेश्वर महादेव के मंदिर का भी निर्माण कराया गया था।
कहा जाता है कि, एक बार इस बाँध में पानी का स्तर ज़्यादा हो गया था, जिससे आस पास के क्षेत्रों में बाढ़ आ गयी। इस बाढ़ की चपेट में लगभग 10 गाँव आए और ये सारे गाँव बाढ़ के पानी में जलमग्न हो गये। उन गाँवों को झील के किनारे फिर से बसाया गया। कहा जाता है कि आज भी जब गर्मी के दिनों में झील के पानी का स्तर कम होता है, तो झील में उन गांवों के खंडहर नजर आते हैं।
झील के पृष्ठभूमि में अरावली का ढलान, पलाश के वृक्षों के छोटे बड़े झुरमुट, कई फलों के वृक्ष जैसे खजूर, गूलर, लसोडा आदि के वृक्षों से भरा हुआ है। पास ही के खुले मैदान में बेर और खैर के वृक्ष यहाँ के वनस्पति नज़ारे को एक अलग ही रूप देते हैं। यह सारा इलाका पुराने समय के ज़माने में राजा महाराजाओं का पसंदीदा शिकारगाह था। उनके द्वारा बनवाई गई अनेक शिकार की ओदियां आज भी वहां मौजूद हैं।
झील के पृष्ठभूमि में अरावली पर्वत
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यहाँ रहने की सुविधा
झील के पास ही जयसमंद लेक रिज़ॉर्ट है, जहाँ आपके रहने-खाने सबका इंतेज़ाम बेहतरीन ढंग से किया गया है।
यहाँ पहुँचें कैसे?
सड़क यात्रा द्वारा: जयसमंद झील राजस्थान के मुख्य शहरों से आसानी से जुड़ा हुआ है। कई बस सुविधाएँ यहाँ के प्रमुख शहरों से उपलब्ध हैं। आप कोई निजी टैक्सी या कैब बुक कर भी यहाँ पहुँच सकते हैं।
रेल यात्रा द्वारा: यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन उदयपुर रेलवे स्टेशन है, जो देश के बाकी राज्यों और शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
हवाई यात्रा द्वारा: इसका सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा भी उदयपुर हवाई अड्डा ही है।
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