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इस देवता को कहा जाता है काशी कोतवाल, यहां कोतवाली में थानेदार नहीं... बाबा बैठते हैं

काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाने वाले बाबा काल भैरव का मंदिर वाराणसी के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि अगर बाबा के दर्शन नहीं किए तो काशी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

काशी की परम्परा निराली है, ऐसा काशीवासी नहीं बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक कहते हैं। इस पवित्र नगरी के बारे में आप जितना जानना या सुनना चाहेंगे, वो कम ही होगा और उसका मुख्य कारण हैं यहां के अतरंगी लोग और उनकी संस्कृति व परम्परा। काशी को भोले की नगरी के नाम से जाना जाता है यानी कि महादेव की नगरी या महादेव का घर। यहां हर गली, हर मोहल्ले महादेव के भक्त मिल जाएंगे, जो अपनी सुबह की शुरुआत काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद के साथ करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि काशी में एक ऐसा मंदिर है, जिसे काशी कोतवाल के नाम से पूजा जाता है।

काशी के मुख्य देवता हैं काशी कोतवाल

अगर आप कभी काशी गए होंगे तो आपको पता होगा और अगर नहीं मालूम है तो कोई बात नहीं। हम बताने जा रहे हैं आपको काशी के कोतवाल के बारे में। वाराणसी में एक काल भैरव का मंदिर है, जो मैदागिन इलाके में स्थित है। काशी के सभी मंदिरों की तरह इस मंदिर की भी अपनी एक अलग पहचान और अपनी एक अलग पौराणिक मान्यता है, जिन्हें बाबा काल भैरव या काशी कोतवाल के नाम से जाना जाता है। रविवार के दिन इस मंदिर में काफी भीड़ देखने को मिलती है।

kashi kotwal

काशी कोतवाल के नाम से पूजे जाते हैं काल भैरव

जैसा कि हर शहर में कोतवाली थाना होता है और उसकी मुख्य कुर्सी पर थानेदार बैठता है। लेकिन काशी के कोतवाली थाने की मुख्य सीट पर कोई थानेदार नहीं बल्कि बाबा काल भैरव विराजते हैं और थानेदार की कुर्सी कोतवाल के ठीक बगल में लगती है, जिस पर थानेदार बैठता है। यही कारण है कि बाबा को काशी कोतवाल कहा जाता है। काशी के कई इलाकों के लोग बाबा को शादी या किसी मुख्य अवसर का पहला कार्ड भी चढ़ाते हैं और उनका मानना है कि ऐसा करने से सभी काम अच्छे से हो जाते हैं और बाबा का आशीर्वाद उन पर बना रहता है।

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काशी कोतवाल के पीछे की पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार, विष्णु जी और ब्रह्मा जी में बहस हो रही थी कि आखिर दोनों में से श्रेष्ठ कौन है? फिर दोनों शिव जी के पास पहुंचें, इसके बाद बहस के दौरान दोनों की किसी बात से शिव जी नाराज हो गए, जिससे काल भैरव की उत्पत्ति हुई और फिर ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काल भैरव ने काट दिया, जिसके बाद उनके नाखुनों में ही ब्रह्मा जी का सिर फंसा रह गया और उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष भी लग गया, जिससे मुक्ति पाने के लिए शिव जी के कहे अनुसार काल भैरव तीनों लोक की पैदल यात्रा पर निकल पड़े और काशी में आते ही ब्रह्मा जी का सिर उनके उंगलियों से अलग हो गया, जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें काशी में ही रहने का आदेश दिया और वरदान भी दिया वे काशी के कोतवाल के नाम से जाने जाएंगे।

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काशी विश्वनाथ से पहले काशी कोतवाल की पूजा

वर्तमान समय में अगर कोई भी भक्त काशी जाता है और काशी विश्वनाथ का दर्शन करना चाहता है तो उन्हें सबसे पहले काशी कोतवाल के दर्शन करना होता है और फिर काशी विश्वनाथ के दर्शन। तभी उनकी यात्रा सफल मानी जाती है। कहा जाता है कि कोशी कोतवाल ही काशी के कर्ता-धर्ता हैं और उनकी मर्जी के बगैर काशी में कोई प्रवेश भी नहीं कर सकता है।

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बाबा का विशेष प्रसाद है मदिरा

काल भैरव के मंदिर में शराब का भोग लगाया जाता है। मंदिर के पुजारी महाराज सुमित उपाध्याय बताते हैं कि इसका कोई मुख्य कारण आज तक नहीं मिल पाया है लेकिन शराब को बाबा के मुख्य प्रसाद के रूप में जाना जाता है, जो मंदिर में उत्सव के दौरान मुख्य रूप से चढ़ाया भी जाता है। अगर किसी भक्त के काम नहीं बनते और बाबा के दरबार में हाजिरी लगाकर वे मन्नत मांगते हैं और जब वो पूरी हो जाती है तो वे बाबा को शराब का भोग लगाते हैं। वैसे इसके पीछे कई मान्यताएं है जो भिन्न-भिन्न है।

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काल भैरव मंदिर कैसे पहुंचें?

काल भैरव मंदिर पहुंचने के लिए यहां का नजदीकी एयरपोर्ट वाराणसी एयरपोर्ट है, जो मंदिर से करीब 25 किमी. की दूरी पर है। वहीं, मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन वाराणसी जंक्शन है, जो मंदिर परिसर से करीब 5 किमी. की दूरी पर है। इसके अलावा सड़क मार्ग से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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