अशोक स्तम्भ के बारे में तो लगभग सभी लोग जानते हैं कि ये भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। अभी हाल ही में नए संसद भवन के शीर्ष पर भी इसे लगाने से काफी बवाल मच गया था। खैर ये सब तो राजनीतिक बात है, आप सभी ने अपने जीवन में यात्रा में जरूर की होगी तो रास्ते में किसी गंतव्य पर आपको अशोक स्तम्भ जरूर दिखाई दिया होगा। अब देश का राष्ट्रीय चिन्ह है तो जाहिर है कि हर जगह होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि इसके पीछे की कहानी क्या है, आखिर किसने और कैसे इसे डिजाइन किया होगा या क्या है इसके बनवाने के पीछे का कारण? इन सभी से रूबरू करवाएंगे हम इस लेख के माध्यम से...
आइए चलते हैं अशोक स्तम्भ के बारे में जानकारी प्राप्त करने...
असल में हमारे राष्ट्रीय प्रतीक में सिर्फ अशोक स्तंभ का शीर्ष भाग ही है। मूल स्तंभ के शीर्ष पर चार भारतीय शेर बैठे हैं, जिनके पीठ एक-दूसरे से सटे हुए हैं। इन्हें सिंहचतुर्मुख कहा जाता है। सिंहचतुर्मुख के आधार के बीच में अशोक चक्र है, जिसे आप राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' के बीच में हर रोज देखते हैं। करीब सवा दो मीटर का सिंहचतुर्मुख वर्तमान समय में वाराणसी के सारनाथ संग्रहालय में रखा गया है। कहा जाता है कि ये अब भी अपने मूल स्थान पर ही है। करीब 250 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने इसे बनवाया था।
ऐसे कई स्तम्भ आपको भारत में देखने को मिल जाएंगे, जहां सम्राट अशोक ने राज किए थे। इनमें से सांची का स्तम्भ प्रमुख है। इतिहासकारों द्वारा कहा जाता है कि देश में अब केवल सात ही अशोक स्तंभ बच पाए हैं, बाकी सब ध्वस्त या नष्ट हो चुके हैं। कई चीनी यात्रियों ने भी भारत में अशोक स्तंभ के बारे में जिक्र किया है। उनमें सारनाथ के स्तम्भ के बारे में भी बताया गया है। 20वीं शाताब्दी के शुरुआत तक इसे खोजा नहीं गया है, क्योंकि पुरातत्वविदों को सारनाथ की जमीन पर कोई ऐसे संकेत ही नहीं मिले थे, जिससे उन्हें लगे कि जमीन के नीचे कुछ हो सकता है। वहीं, 1851 ईस्वी में खुदाई के दौरान सांची से एक अशोक स्तंभ मिल चुका था, जिसका सिंहचतुर्मुख सारनाथ में मिले सिंहचतुर्मुख से थोड़ा अलग था।
फ्रेडरिक ऑस्कर ने खोजा था भारत का राष्ट्रीय चिन्ह
मशहूर इतिहासकार चार्ल्स रॉबिन एलेन ने सम्राट अशोक पर लिखी गई अपनी एक किताब 'Ashoka: The Search for India's Lost Emperor' में बताया है कि फ्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल जर्मनी में जन्मे थे लेकिन उन्होंने जर्मनी की नागरिकता छोड़ भारत आए और ब्रिटिश नागरिकता ले ली। फिर रुड़की के थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजिनियरिंग (अब IIT रुड़की) से डिग्री ली। रेलवे में बतौर सिविल इंजिनियर काम करने के बाद फ्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल ने लोक निर्माण विभाग में ट्रांसफर ले लिया।
1903 ईस्वी में उनकी तैनाती (Posting) बनारस में हुई, उस समय उनके पास पुरातत्वविद का कोई अनुभव नहीं था। इसके बावजूद उन्हें परमिशन मिली कि वे सारनाथ में खुदाई करवा सकें। इस दौरान उन्हें सबसे पहले मुख्य स्तूप के पास गुप्त काल के मंदिर के अवशेष मिले, जहां उन्हें अशोक काल का एक ढांचा भी मिला था। आसपास खुदाई करने पर उन्हें स्तम्भ के सभी हिस्से मिल गए लेकिन नहीं मिला तो स्तम्भ का ऊपरी हिस्सा 'सिंहचतुर्मुख'।
1905 में मिला था अशोक स्तम्भ
इसी बीच मार्च 1905 ईस्वी का वो समय आया, जब खुदाई में अशोक स्तम्भ का शीर्ष भी मिल गया। जिस स्थान पर स्तम्भ मिला, उसी स्थान म्यूजियम बनाने के आदेश मिल गए, जो भारत का भारत का पहला ऑन-साइट म्यूजियम है। एक साल बाद 1906 ईस्वी में भारत के दौरे पर वेल्स के राजकुमार और राजकुमारी (किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी) को सारनाथ में अपनी खोज दिखाई। कहा जाता है कि साल 1921 में भारत से लंदन लौटने पर फ्रेडरिक ने अपने घर का नाम 'सारनाथ' रखा था।
26 जनवरी 1950 को मिला भारत का राष्ट्रीय चिन्ह
सारनाथ में अशोक स्तंभ की खोज भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसके बाद जब भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुई तो भारतीय अधिराज्य ने 30 दिसंबर 1947 को सारनाथ के अशोक स्तम्भ के सिंहचतुर्मुख की अनुकृति को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया। इधर, संविधान ड्राफ्ट किए जाने की शुरुआत हुई। हाथों से लिखे जा रहे संविधान पर भी राष्ट्रीय प्रतीक उकेरा जाना था, जिसे बाद में उकेरा भी गया। फिर 26 जनवरी 1950 का वो दिन आया जब सत्यमेव जयते के ऊपर अशोक के सिंहचतुर्मुख की एक अनुकृति देखने को मिला, जिसे भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया।
इन जगहों पर आज भी देखने को मिलता है अशोक स्तम्भ
महान सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में यूं तो कई स्थानों पर अपने अशोक स्तम्भ का इस्तेमाल किया और इसे बनवाया। लेकिन अखंड भारत की तस्वीर में कई स्तम्भों की छवि मिट गई। वर्तमान समय में काफी कम ही स्थानों पर उनके द्वारा बनवाए गए अशोक स्तम्भ देखने को मिलते हैं। इनमें से कुछ खास के नाम यहां दिए गए हैं- सारनाथ का अशोक स्तम्भ, प्रयागराज का अशोक स्तम्भ, वैशाली का अशोक स्तम्भ, दिल्ली का अशोक स्तम्भ, सांची का अशोक स्तम्भ।
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