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यहां गढ़ा है परशुराम का फरसा, जिसने भी छूने की कोशिश की...

आज भी झारखंड में गढ़ा है भगवान परशुराम का फरसा। Mysterious fact related to lord Parshuram axe.

परशुराम एक महान योद्धा थे, जिन्हे भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता हैं। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार उनका जन्म माता रेणुका (जगदग्नि ऋषि की पत्नि) के गर्भ से हुआ था। भगवान परशुराम शस्त्रविद्या के महान गुरू माने जाते थे। जिन्होंने भीष्म, कर्ण यहां तक कि द्रोण को शस्त्र चलाने की शिक्षा दी थी। उन्हे शिवजी द्वारा फरसा प्रदान किया गया था, इसलिए उनका नाम 'परशुराम' पड़ा।

वैसे कहा जाता है कि आज भी भगवान परशुराम का फरसा पृथ्वी के किसी कोने में गढ़ा है, और जो भी उससे लेने या काटने की हिमाकत करता है उसका सर्वनाश हो जाता है। क्या आप जानना चाहेंगे वो जगह कहां है...

भगवान परशुराम का फरसा

भगवान परशुराम का फरसा

PC- राजा रवि वर्मा

भगवान परशुराम का फरसा झारखंड के रांची शहर से लगभग 166 किमी की दूरी पर स्थित टांगीनाथ धाम की जमीन में गढ़ा है। कहा जाता है इस जगह से परशुराम का गहरा संबंध है। बता दें कि यहां की स्थानीय भाषा में 'फरसे' को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस जगह का नाम टांगीनाथ पड़ा। यहां आज भी परशुराम के पद चिन्हों को देखा जा सकता है। आगे जानिए क्यों यह धाम परशुराम के बेहद करीब माना जाता है, और क्या है उनके जमीन में गढ़े फरसे का रहस्य।मौत की खदान का बड़ा रहस्य, गूंजती है मृत मजदूरों की आवाजें

परशुराम की घोर तपस्या

परशुराम की घोर तपस्या

PC- Ayan Gupta

कहा जाता है कि जिस वक्त सीता के स्वयंवर में भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा था तो यह सब देख परशुराम काफी क्रोधित हुए थे। और राम को काफी बुरा-भला कहा। लेकिन राम शांत थे। लेकिन जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि प्रभु राम भी विष्णु के अवतार हैं तो वे काफी लज्जित हुए। और घने जंगल की ओर चल पड़े।

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फरसे से जुड़ा रहस्य

फरसे से जुड़ा रहस्य

PC- Ks.mini

कहा जाता है कि भगवान परशुराम के फरसे में कभी जंग नहीं लगती है। खुले में रहने के बावजूद यह फरसा आज भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। इसके अलावा यह फरसा कितनी गहराई में गढ़ा है, इसका पता भी आज तक कोई नहीं लगा पाया। इसके जुड़ी एक कहानी प्रचलित है कि कभी यहां के किसी लाहोर ने भगवान परशुराम के फरसे को काटने की कोशिश की थी , लेकिन वो काट नहीं पाया।

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भगवान शिवजी से संबंध

भगवान शिवजी से संबंध

टांगीनाथ धाम को भगवान शिवजी से भी जोड़कर देखा जाता है। बहुत से लोगों का मानना है कि यह गढ़ा हुआ फरसा भगवान शिवजी का त्रिशुल है। उनके अनुसार जब शिवजी, शनि पर क्रोधित हो गए थे तो उन्होंने अपने त्रिशूल से शनि पर प्रहार किया था।

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कैसे करें प्रवेश

कैसे करें प्रवेश

टांगीनाथ धाम, झारखंड के रांची शहर से लगभग 166 किमी की दूरी पर स्थित है। रांची से आप यहां बस या स्थानीय परिवहन साधनों की मदद से पहुंच सकते हैं। रांची तक आने के लिए आप रांची जंक्शन(रेल मार्ग) और रांची एयरपोर्ट(हवाई मार्ग) का सहारा ले सकते हैं। इसके अलावा आप रांची सड़क मार्ग से भी आ सकते हैं। रांची बेहतर सड़क मार्गों द्वारा कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।अद्भुत : पूर्वोत्तर भारत के ऐसे नजारे शायद ही आपने देखें हों

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