काशी का मतलब ही है बाबा भोलेनाथ की नगरी। यानी कि ऐसा नगर जो शिव का निवास स्थान हो, उनका घर हो। तो यहां उनके शिवालयों का होना भी जायज है। काशी में भगवान के कई बड़े मंदिर है- इसमें मारकण्डेय महादेव का नाम भी शामिल है, जहां श्रावण के महीने में भक्तों का तांता लगा रहता है। वहीं, शिवरात्रि के महापर्व पर यहां काशी विश्वनाथ से भी ज्यादा भीड़ देखी जाती है।
सभी भक्तों की तरह मैं भी श्रावण के दूसरे सोमवार के दिन बाइक लेकर बाबा के दर्शन के लिए शाम के करीब 5:30 बजे निकल पड़ा। इस दौरान बारिश काफी तेज हो रही थी, लेकिन महादेव की कृपा और मेरी भक्ति थी कि मैं बारिश में भींगते हुए करीब 40 किमी. दूर मंदिर पहुंचा। करीब 7 बजे तक मंदिर परिसर तक पहुंच बाबा के दर्शन किए। लेकिन बाबा की ऐसी भक्ति थी कि जैसे भींगने के बाद भी कुछ हुआ ही ना हो। काफी जल्दी ही बाबा के दर्शन भी हो गए और मेरे मन को एक अलग ही सुकून मिला, जो शायद पहले कभी नहीं मिला था।
मंदिर को लेकर मान्यता
इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि मंदिर में भगवान शिव को चढ़ा जल ग्रहण करने से भक्तों को काफी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। यहां कई भक्त अपनी समस्या लेकर इस मंदिर में आते हैं और बाबा से फल की कामना लिए मिलते हैं। जो भक्त सच्चे मन से बाबा की पूजा करते हैं, उन्हें उनके तमाम रोगों और कष्टों से मुक्ति भी मिल जाती है।
पुत्ररत्न की होती है प्राप्ति
मंदिर को लेकर एक मान्यता है कि महाशिवरात्रि और उसके दूसरे दिन राम नाम लिखा हुआ बेलपत्र चढ़ाने से पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। इसके अलावा भी मंदिर को लेकर कई किवदंती है। यह मंदिर वाराणसी से गाजीपुर वाले मार्ग पर स्थित है।
यमराज को लौटना पड़ा था वापस
प्राचीन काल में जब मारकण्डेय ऋषि पैदा हुए थे तो उन्हें आयु दोष था। उनके पिता ऋषि मृकण्ड को ज्योतिषियों ने बताया था कि बालक की आयु मात्र 14 वर्ष है, यह सब सुनकर ऋषि काफी दुखी हुए और ब्राह्मणों की सलाह पर गंगा गोमती के संगम तट पर बालू से शिवलिंग बनाकर महादेव की पूजा-अर्चना करने लगे और महादेव की उपासना में लीन हो गये।
इस दौरान जब बालक मारकण्डेय की 14 वर्ष पूरे हुए तो यमराज उन्हें लेने आ गए। उस वक्त मारकण्डेय भी शिव की अराधना कर रहे थे। तब जैसे ही यमराज बालक के प्राण लेने के लिए आगे बढ़े तब भगवान शिव प्रकट हो गए। उन्होंने यमराज से कहा कि मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा और मुझसे पहले उसकी पूजा की जाएगी। तभी से इस जगह पर मारकण्डेय जी व महादेव जी की पूजा की जाने लगी और इस पवित्र स्थान का नाम मारकण्डेय महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
मंदिर के आसपास की जगहें
मंदिर से करीब 10 किमी. की दूरी पर उमरहा में स्थित स्वर्वेद महामंदिर है, जिसे काशी लोटल टेम्पल भी कहा जाता है। इस मंदिर को विशालतम मेडिटेशन सेंटर के रूप में जाना जाता है, जो काशी के एक बड़ी उपलब्धि है। यह महामंदिर सात मंजिला है और इसमें 4 लिफ्ट भी लगाए गए है। इसके अलावा मंदिर से करीब 25 किमी. की दूरी पर स्थित बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल सारनाथ है, जहां भगवान बुद्ध अपने पहले पांच शिष्यों को शिक्षा दी थी। वहीं, करीब 40 किमी. दूर शहर में प्रवेश करने पर बाबा काशी विश्वनाथ, संकट मोचन मंदिर, दुर्गाकुण्ड मंदिर, तुलसी मानस मंदिर और बीएचयू- न्यू काशी विश्वनाथ मंदिर है।
कैसे पहुंचे मारकण्डेय महादेव मंदिर
मारकण्डेय महादेव मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट वाराणसी में ही है, जो मंदिर से करीब 50 किमी. की दूरी पर है। वहीं, यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन कैंट जंक्शन है, जो मंदिर से करीब 35 किमी. की दूरी पर है। इसके अलावा यहां सड़क मार्ग से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।