दक्षिण भारत का काफी शक्तिशाली राजवंश था चोल, जो 9वीं से लेकर 13 वीं शताब्दी के मध्य एक प्रभावशाली हिन्दू साम्राज्य बनाने में सफल रहा। अपने विकसित होते समय से ही चोल राजाओं ने अपनी वीरगाथाओं को इतिहास के पन्नों में अंकित करने के लिए कई खूबसूरत भवनों, स्मारको और मंदिरों का निर्माण करवाया।
खासकर दक्षिण भारत में अधिकांश हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिरों के निर्माण का श्रेय चोल राजवंश को जाता है। इतिहास के कई साक्ष्यों में चोल राजाओं को सूर्यवंशी कहकर भी वर्णित किया गया है। अशोक काल के कई अभिलेखों में चोल राजाओं के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त होती है। जैसे-जैसे चोलों की शक्ति बढ़ती गई उन्होंने अपने गौरव और एश्वर्य को प्रदर्शित करने के लिए कई कार्य करने शुरू किए, जिनमें एक मंदिर निर्माण भी था।
मंदिरों की भव्यता और ऊंचाई काफी ज्यादा मायने रखती थी इसी से राजा के शौर्य, वीरता और उदारता के बारे में पता चलता था। इसी क्रम में आज हमारे साथ जानिए दक्षिण भारत में मौजूद चोल राजाओं द्वारा निर्मित आकर्षक मंदिरों में एक एरावतेश्वर मंदिर के बारे में।
एक खूबसूरत हिन्दू मंदिर
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चूंकि चोल एक शक्तिशाली हिन्दू राजवंश था इसलिए उन्होंने दक्षिण भारत में कई भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। उन्हीं में से एक है तमिलनाडु का ऐरावतेश्वर मंदिर। इस मंदिर की ऐतिहासिकता और भव्यता का इस बात से पता चलता है कि इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर भी घोषित किया जा चुका है। ये भव्य मंदिर चोल राजाओं के चुनिंदा सबसे जीवंत संरचनाओं में गिना जाता है।
मंदिर को बृहदीश्वर, गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ विश्व धरोहर की मान्यता प्राप्त हुई है। ऐरावतेश्वर मंदिर का निर्माण चोल द्वितीय के शासन काल के दौरान 12 सदी में करवाया गया था। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी और भी कई दिलचस्प बातें।
भगवान शिव को समर्पित
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चोल द्वितीय द्वारा निर्मित यह भव्य मंदिर देवो के देव महादेव को समर्पित है। यहां भगवान शिव को एरावतेश्वर के नाम से पूजा जाता है। इस नाम के पीछे भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, माना जाता है कि इसी स्थान पर देव इंद्र के सफदे हाथी एरावत ने भोलेनाथ की पूजा की थी। ऋषी दुर्वासा द्वारा इंद्र का यह हाथी श्रापित था, श्राप के कारण हाथी का रंग बदल गया था। अपना रंग वापस पाने के लिए उसने इसी स्थान पर शिव जी की पूजा की थी। और जिसके बाद उसे अपना रंग वापस मिला।
इस मंदिर से एक और पौराणिक कथा जुड़ी है, माना जाता है कि कभी यमराज को भी श्राप का भागी बनना पड़ा था। श्राप के कारण उसका शरीर जलन से पीड़ित था। जिसके बाद उसने इसी स्थान पर भगवान शिव की पूजा की और श्राप से मुक्त हुआ।
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मंदिर की आकर्षक वास्तुकला
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एरावतेश्वर मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है। अगर आप इस मंदिर को चारों तरफ से देखें तो पता चलेगा कि इस पूरे मंदिर को स्थापत्य कला से सजाया गया है। मंदिर की दीवारों, छतों पर आकर्षक नक्काशी का खूबसूरत प्रयोग किया गया है। हालांकि आकार में यह मंदिर बृहदीश्वर, गांगेयकोंडाचोलीश्वरम से छोटा है लेकिन इसकी संपूर्ण संरचना का कोई जवाब नहीं।
जानकारी के अनुसार आस्था के साथ सतत मनोरंजन और नित्य-विनोद को ध्यान में रखकर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंण्डपम के दक्षिणी भाग को पत्थर के एक विशाल रथ का रूप दिया गया है, देखने से मालूम पड़ता है कि यह पत्थरनुमा रथ घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा है।
मंदिर की भव्यता और देवी-देवता
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मंदिर के अंदर प्रवेश करें तो आपको खूबसूरत नक्काशीदार इमारतों का समूह दिखाई देगा। यहां एक वो भी स्थान है जहां जानवारों की बलि दी जाती थी। हालांकि इस विषय में सटीक जानकारी प्राप्त नहीं होती। यहां गणेश जी का एक छोटा मंदिर भी स्थापित है। जिसमें भगवान गणेश एक छवि के रूप में विराजमान हैं। ऐरावतश्वर मंदिर की उत्तर दिशा में मुख्य देवता की अर्धांगिनी पेरिया नायकी अम्मन का भी एक मंदिर स्थापित है।
ध्यान से देखने पर आपको मंदिर में अलग-अलग जगहों पर शिलालेख भी नजर आएंगे, जो चोल राजाओं के विषय में जानकारी देते हैं। मंदिर के बरामदे पर 108 खंड के शिलालेख मौजूद हैं जिनपर शिव संतों यानी शिवाचार्यों के नाम अंकित हैं। इस मंदिर को 2004 में महान चोल मंदिरों में शामिल किया गया था।
कैसे करें पर्वेश
एरावतेश्वर मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के दारासुरम में स्थित है, जो कुंभकोणम से नजदीक पड़ता है। आप दारासुरम तीनों मार्गों (हवाई/रेल/सड़क) से पहुंच सकते हैं। इस लिंक को क्लिक करें और जानें कैसे पहुंचे दारासुरम।