भारत में जन्में बौद्ध धर्म ने अपने शुरूआती दौर से ही सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। ज्ञात हो कि बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इस धर्म का शुमार दुनिया के उन धर्मों में है जिसे लोग ज्यादा से ज्यादा जाननाऔर समझना चाहते हैं और इसको समझने के लिए वो भारत के अलग अलग बौद्ध देस्तिनेषणों का रुख कर रहे हैं। तो इसी क्रम में आज अपने इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको अवगत कराएंगे बिहार के बोधगया से।
बोधगया बिहार में स्थित है और ऐतिहासिक रूप से उरूवेला, समबोधि, वज्रासन या महाबोधि के नाम से जाना जाता था। बोधगया अपने कद्रदानों को आध्यात्म और वास्तुकला आश्चर्य का अनुभव कराता है। बौद्ध धर्म तथा धार्मिक आध्यात्म के परिपेक्ष्य में बोधगया का स्थान काफी ऊँचा है। बोधगया पर्यटन के अन्तर्गत बौद्ध धर्म तथा कई अन्य पंथों के सबसे ज्यादा प्रामाणिक और ऐतिहासिक केन्द्र आते हैं।
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बोधगया बौद्ध धर्म अनुयायियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। स्थान के रूप में बोधगया की अपनी आत्मा है जो शान्ति और सौम्यता से ओत-प्रोत है। यदि बात बोधगया में पर्यटन के बिंदु के इर्द- गिर्द हो तो यहां एक पर्यटक के लिए ऐसा बहुत कुछ है जिसकी कल्पना उसने पहले कभी न की होगी यहां आने वाले पर्यटक महाबोधि मन्दिर, विष्णुपद मन्दिर, बोधि वृक्ष, दुंगेश्वरी गुफा और जामा मस्जिद जैसे स्थान अवश्य देखें।
आइये इस लेख के जरिये जानें कि बोधगया में ऐसा क्या क्या है जिसे आपको अवश्य देखना चाहिए।
बराबर गुफायें
मौर्यकाल युगीन बराबर गुफायें देश की सबसे पुरानी पत्थरों से काटी गई गुफाये हैं जो आज भी विद्यमान हैं। ज्यादातर बराबर गुफाओं में दो कक्ष हैं, जो पूरी तरह से ग्रनाइट से काटे गये हैं और इनकी भीतरी सतह बहुत ही चमकदार होने के कारण आवाज की गूँज बहुत मजेदार होती है। चार गुफाओं में करन चौपड़, लोमस ऋषि, सुदामा और विश्व झोपड़ी प्रमुख हैं जिनमें विशाल चापें दिखाई देती हैं जो प्रचीन समय में दुर्लभ था। ये गुफाये पत्थरों की कटाई वाली वास्तुकला शैली के शानदार उदाहरण हैं।
बोधि वृक्ष
महाबोधि मन्दिर के बोधि वृक्ष को श्री महा बोधि भी कहते हैं। इस वृक्ष को पवित्र माना जाता है क्योकि बौद्ध धर्मग्रन्थों के अनुसार गौतम बुद्ध को ज्ञान इसी पेड़ के नीचे प्राप्त हुआ था और इस ज्ञान प्राप्ति के बाद बोधि वृक्ष के लिये कृतज्ञता के भाव से उनका हृदय भर गया। कई शासकों ने इस वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास किया लोकिन ऐसा माना जाता है कि हर ऐसे प्रयास के बाद बोधि वृक्ष फिर से पनप गया। आज का पेड़ शायद बोधि वृक्ष की पाँचवी पीढ़ी है।
दुंगेशवरी गुफा मन्दिर
खूबसूरत दुंगेशवरी गुफा मन्दिर, जिसे महाकला गुफाओं के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुत ही पवित्र और आत्मीय स्थान है। पर्यटक दुंगेशवरी गुफा में शान्ति की तलाश में आते हैं। ये गुफा मन्दिर वही स्थान है जहाँ से बोधगया में ज्ञान प्राप्ति से पूर्व गौतम बुद्ध ने तपस्या की थी। यह मुख्य रूप से तीन गुफाओं से मिलकर बना है जिसमें हिन्दू और बौद्ध तीर्थ स्थल हैं।
जामा मस्जिद
बोधगया की जामामस्जिद बिहार की सबसे बड़ी मस्जिद है। मुजफ्फरपुर के शाही परिवार ने इसे 180 वर्ष पूर्व बनवाया था। मस्जिद में प्रार्थना के लिये भारी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं और यह बिहार में तबलिग का महान केन्द्र है।
महाबोधि मन्दिर
महाबोधि मन्दिर एक पवित्र बौद्ध धार्मिक स्थल है क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ पर गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। पश्चिमी हिस्से में पवित्र बोधि वृक्ष स्थित है। संरचना में द्रविड़ वास्तुकला शैली की झलक दिखती है। राजा अशोक को महाबोधि मन्दिर का संस्थापक माना जाता है। निःसन्देह रूप से यह सबसे पहले बौद्ध मन्दिरों में से है जो पूरी तरह से ईंटों से बना है और वास्तविक रूप में अभी भी खड़ा है। महाबोधि मन्दिर की केन्द्रीय लाट 55 मीटर ऊँचा है और इसकी मरम्मत 19वीं शताब्दी में करवाया गया था।
विष्णुपद मन्दिर
बोधगया हिन्दुओं के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों में से एक है क्योंकि यहाँ पर विष्णुपद मन्दिर का आशीष है। ऐसा माना जाता है कि इस मन्दिर को 40 सेमी लम्बे भगवान विष्णु के पैरों अर्थात धर्मशिला के चारों ओर बनाया गया था। इसे चाँदी की परत से बने हौज में केन्द्र में स्थापित किया गया है। यह मन्दिर 220 साल पुराना है और फाल्गू नदी के किनारे स्थित है।
कैसे जाएं बोधगया
बोधगया सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा है और यहाँ के लिये निकटतम रेलवेस्टेशन और हवाईअड्डा गया में स्थित हैं। बोधगया आने के लिये रेल मार्ग सबसे सुलभ है। शहर में या पास में स्थित रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन की तुलना में हवाई अड्डा काफी दूर है।