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पूजा जहां खून से लथपथ पीठ पर लगाते हैं लोहे का हुक, करते हैं भगवान शिव को संतुष्ट

By Syedbelal

यदि कोई आपकी पीठ में छेद करके उसे लहू लुहान कर दे और उसमें हुक लगा के आपको टांग दे तो आपको कैसा लगेगा ? जाहिर है आप ऐसा करने वाले व्यक्ति को रोक देंगे और हर संभव प्रयास करेंगे कि ऐसा न हो, क्योंकि इससे आपको असहाय पीड़ा होगी और आप उसे बर्दाश्त ही नहीं कर पाएंगे। अब यदि हम आप से ये कहें कि ऐसा ही कुछ नज़ारा आपको पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगा तो शायद आप आश्चर्य से भर जाएं और ये सोचें कि आखिर पश्चिम बंगाल में ऐसा क्यों किया जाता है। Must Read :देवी के मासिक धर्म से लाल होता ब्रह्मपुत्र, तांत्रिक, बलि सच में, बड़ा विचित्र है कामाख्या देवी मंदिर

कहते हैं कि भारत रहस्यों और आश्चर्यों का देश है यहां धर्म के नाम पर आज भी कई ऐसी विधाओं का पालन किया जाता है जो अपने आप में अनूठी हैं। तो इसी रहस्यों और आश्चर्यों के क्रम में आज हम आपको अवगत कराने जा रहे हैं बंगाल के नव वर्ष पोएला बोइशाख के एक दिन पहले आयोजित होने वाली चरक पूजा से। चरक पूजा दक्षिणी बंगाल और बांग्लादेशका लोक पर्व है जो चैत्र के अंतिम दिन मनाया जाता है।

इस पूजा को नील पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित इस पूजा के विषय में यहां के लोगों का मानना है कि इस पूजा के बाद भगवान सारे दुखों को दूर करके समृद्धि, यश वैभव और खुशखाली देते हैं। वास्तव में इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को संतुष्ट करना है। इस दौरान क्षेत्र के लोग अलग अलग गावों में जाकर तेल, नमक, शहद, चावल और पैसे लेके आते हैं आपको बता दें कि इन सभी का इस्तेमाल भगवान शिव को सजाने के लिए किया जाता है।

भगवन शिव को संतुष्ट करने के लिए यहां मानव चरक भी बनते हैं जिसमें इनकी पीठ पर लोहे के हुक फंसाकर इन्हें रस्सी से घुमाया जाता है। ज्ञात हो कि ये बड़ा रिस्की होता है और इसमें व्यक्ति की जान तक जा सकती है। तो अब यदि आपको ये अनोखी पूजा देखने है तो आज ही पश्चिम बंगाल के किसी भी गांव की यात्रा करिये। आइये देखें चरक पूजा को तस्वीरों में।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

चरक पूजा के दौरान कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में लगी दर्शन के लिए भक्तों की भीड़।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

चरक पूजा दक्षिणी बंगाल और बांग्लादेशका लोक पर्व है जो चैत्र के अंतिम दिन मनाया जाता है। इस पूजा को नील पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

भगवान शिव को समर्पित इस पूजा के विषय में यहां के लोगों का मानना है कि इस पूजा के बाद भगवान सारे दुखों को दूर करके समृद्धि, यश वैभव और खुशखाली देते हैं।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्षेत्र के स्थानीय लोहों कि माने तो वास्तव में इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को संतुष्ट करना है।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

बंगाल के नव वर्ष पोएला बोइशाख के एक दिन पहले आयोजित चरक पूजा में हुक में लटके व्यक्ति सभी के आकर्षण का केंद्र रहते हैं।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

जो इस इस पूजा में भाग लेते हैं उनको गांव के बुज़ुर्गों द्वारा तैयार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव खुद इनकी रक्षा करते हैं।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

भगवन शिव को संतुष्ट करने के लिए यहां मानव चरक भी बनते हैं जिसमें इनकी पीठ पर लोहे के हुक फंसाकर इन्हें रस्सी से घुमाया जाता है। ज्ञात हो कि ये बड़ा रिस्की होता है और इसमें व्यक्ति की जान तक जा सकती है।

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

क्यों अपने आप में अद्भुत है चरक पूजा

इस पूजा से कुछ दिन पहले क्षेत्र के लोग अलग अलग गावों में जाकर तेल, नमक, शहद, चावल और पैसे लेके आते हैं आपको बता दें कि इन सभी का इस्तेमाल भगवान शिव को सजाने के लिए किया जाता है।

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