आज अपने इस लेख में हम आपको उत्तर प्रदेश स्थित सारनाथ के एक ऐसे आकर्षण से अवगत करा रहे हैं जिसका इतिहास बहुत पुराना है। जी हां हम बात कर रहे हैं धमेख स्तूप की। सारनाथ में स्थित यह विशाल स्तूप वाराणसी से 13 किमी दूर है। इसका निर्माण 500 ईसवी में सम्राट अशोक द्वारा 249 ईसा पूर्व बनाए गए एक स्तूप व अन्य कई स्मारक के स्थान पर किया गया था। दरअसल सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई स्तूप बनवाए। इन स्तूपों में गौतम बुद्ध से जुड़ी निशानियां रखी गईं थी। यहां पास में ही एक अशोक स्तंभ भी है।
Read in English: Exploring the Treasures of the Dhamek Stupa
ऐसा माना जाता है कि डीयर पार्क में स्थित धमेख स्तूप ही वह जगह है, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद अपने शिष्यों को पहला उपदेश दिया था। यहीं पर उन्होंने आर्य अष्टांग मार्ग की अवधारणा को बतलाया था, जिसपर चल कर व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। इस स्तूप को छह बार बड़ा किया गया। इसके बावजूद इसका ऊपरी हिस्सा अधूरा ही रहा।
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एक चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने पांचवीं शताब्दी में सारनाथ का भ्रमण किया था। उन्होंने लिखा है कि उस समय कॉलोनी में 1500 से ज्यादा धर्माचार्य थे और मुख्य स्तूप करीब 300 फीट ऊंचा था। आइये इस लेख के जरिये जाना जाये कि इस स्तूप में ऐसा क्या ख़ास है जो एक ट्रैवलर को इसे अवश्य देखना चाहिए।
धमेख स्तूप
500 ईसवी में सम्राट अशोक द्वारा 249 ईसा पूर्व बनाए गए एक स्तूप व अन्य कई स्मारक के स्थान पर किया गया था। दरअसल सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई स्तूप बनवाए। इन स्तूपों में गौतम बुद्ध से जुड़ी निशानियां रखी गईं थी। यहां पास में ही एक अशोक स्तंभ भी है।
Photo Courtesy: Ken Wieland
धर्म चक्र स्तूप
अगर यहां मौजूद एक शिलालेख की माने तो इस स्तूप का निर्माण 1026 ईसवी में किया गया था। ब्राह्मी लिपि में लिखे गए इस शिलालेख में कई ऐसी बातें है जो किसी भी व्यक्ति को आश्चर्य में डाल सकती हैं। कहा जाता है कि इस स्तूप का नाम धमेख स्तूप एक बौद्ध भिक्षु ने रखा था।
Photo Courtesy: Simon Stephen
छोटे स्तूप
सारनाथ आने वाले पर्यटक धमेख स्तूप के पास कई छोटे छोटे स्तूप भी देख सकते हैं। यदि इतिहासकारों कि मानें तो इन सभी स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक के शासनकाल में हुआ था। आपको बता दें कि वास्तु और इतिहास में दिलचस्पी लेने वाले किसी भी व्यक्ति को इन स्तूपों की वास्तुकला मोहित कर सकती है।
Photo Courtesy: Varun Shiv Kapur
बौद्ध मठ
आपको बताते चलें कि सारनाथ में कभी बौद्ध मठ भी हुआ करता था जिसके अवशेष आज भी आप यहां देख सकते हैं। बताया जाता है कि मठ में कभी एक विशाल हॉल हुआ करता था जहां राज घराने के लोग वास किया करते थे। कहा जाता है कि सम्राट अशोक खुद यहां रहते थे और भिक्षुओं से शिक्षा के अलावा अपने राज काज का संचालन करते थे।
Photo Courtesy: R. M. Calamar
पहला उपदेश
ऐसा माना जाता है कि धमेख स्तूप ही वह जगह है, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद अपने शिष्यों को पहला उपदेश दिया था। यहीं पर उन्होंने आर्य अष्टांग मार्ग की अवधारणा को बतलाया था, जिसपर चल कर व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
Photo Courtesy: Simon Stephen
नियम और समय
आपको बताते चलें कि यहां आने वाले पर्यटकों को कुछ ख़ास नियमों का पालन करना होता है। यदि आप मंदिर स्तूप परिसर में हैं शांत रहना होता है साथ ही चप्पल या जूते पहन के आप यहां अंदर नहीं आ सकते। इसके अलावा मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल यहां मना किया जाता है।
समय
दिसंबर से जनवरी - सुबह 11. 30 से 12. 30
फरवरी से नवंबर - सुबह 11. 30 से 1. 30
Photo Courtesy: Sudiptorana