आज नवरात्रि का चौथा दिन है। आज का दिन देवी दुर्गा के एक अन्य रूप देवी कुष्मांडा को समर्पित है। हिंदू धर्म में देवी कुष्मांडा को हंसी की देवी के रूप में जाना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।
हमारी इस नवरात्रि स्पेशल सीरीज में आज हम आपको अवगत कराएंगे वाराणसी स्थित दुर्गा मंदिर से। दुर्गा मंदिर, माता दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर वाराणसी के रामनगर में स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक बंगाली महारानी ने 18 वीं सदी में करवाया था। वर्तमान में यह मंदिर बनारस के शाही परिवार के नियंत्रण में आता है।
यह मंदिर, भारतीय वास्तुकला की उत्तर भारतीय शैली की नागारा शैली में बनी हुई है। इस मंदिर में एक वर्गाकार आकृति का तालाब बना हुआ है जो दुर्गा कुंड के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का शिखर काफी ऊंचा है जो चार कोनों में विभाजित है और हर कोने में एक टावर और बहु- टावर लगे हुए हैं। यह इमारत लाल रंग से रंगी हुई है जिसमें गेरुए रंग का आर्क भी है।
मंदिर में देवी के वस्त्र भी गेरू रंग के है। एक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को मनुष्यों द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि यह मूर्ति स्वंय प्रकट हुई थी, जो लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने आई थी। नवरात्रि और अन्य त्यौहारों के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्तगण श्रद्धापूर्वक आते है। गैर - हिंदू लोगों को मंदिर के आंगन और गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के परिसर में काफी संख्या में बंदर उपस्थित रहते है।