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ऐसा क्या है जो बनाता है इलाहाबाद को ट्रेडीशनल और मॉडर्न का मिला-जुला संगम

By Syedbelal

क्या आप भीड़ भाड से बोर हो गए हैं ? क्या आप शांति की तलाश कर रहे हैं ? क्या कुछ दिनों के लिए आप अकेले रहकर कुछ वक़्त अपने आप को देना चाहते हैं ? यदि इन सभी प्रश्नों के लिए आपका उत्तर हां में है तो आज ही आप उत्तर प्रदेश के बड़े और खूबसूरत शहरों में शुमार इलाहाबाद का रुख करें। उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा शहर इलाहाबाद कई मामलों में बेहद महत्वपूर्ण शहर है। यह न सिर्फ हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, बल्कि आज के भारत को बनाने में भी इसकी अहम भूमिका रही है।

पहले प्रयाग के नाम से प्रसिद्ध इलाहाबाद का वर्णन वेदों के साथ-साथ रामायण और महाभारत में भी मिलता है। 1575 में मुगल बादशाह अकबर ने इस शहर का नाम इलाहाबास रखा था, जो बाद में इलाहाबाद के नाम से जाना जाने लगा। इलाहाबाद ने हर दौर में भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संपदा को सींचा है।

महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और मुरली मनोहर जोशी जैसे कई विद्वान इलाहाबाद से ही निकले हैं। नि:संदेह इलाहाबाद भ्रमण के दौरान धर्म, संस्कृति और इतिहास की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। आज इलाहाबाद में घूमने के लिए बहुत कुछ है। तस्वीरों में ट्राइबल इंडिया

यहां के पर्यटन स्थलों में मंदिर, किला और विश्वविद्यालय शामिल हैं। तीर्थ का केन्द्र होने के कारण यहां कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। तो अब देर किस बात की आइये जानें कि इलाहाबाद की यात्रा के दौरान क्या क्या देखना और करना चाहिए आपको।

अल्फ्रेड पार्क

अल्फ्रेड पार्क

133 एकड़ में फैला अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद का सबसे बड़ा पार्क है। इस पार्क को अंग्रेजी शासनकाल में राजकुमार अल्फ्रेड की भारत यात्रा के मद्देनजर बनया गया था। पार्क के अंदर राजा जार्ज पंचम और महारानी विक्टोरिया की विशाल प्रतिमा भी लगाई गई है। पार्क में महारानी विक्टोरिया को समर्पित सफेद मार्बल की छतरी बनी हुई है। यह छतरी ब्रिटिश काल के विशिष्ट वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना है। खूबसूरत अल्फ्रेड पार्क शहर की भीड़-भाड़ से काफी दूर है। औपनिवेशिक दौर का यह पार्क बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

इलाहाबाद किला

इलाहाबाद किला

अपने समय में सबसे उत्कृष्ट समझे जाने वाले इलाहाबाद किला का निर्माण 1583 में किया गया था। यह अकबर के द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा किला है। अपने विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाने वाला यह किला गंगा और युमाना के संगम पर स्थित है। इस किले का इस्तेमाल अब भारतीय सेना द्वारा किया जाता है। आम नागरिकों के लिए कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी हिस्सों में प्रवेश वजिर्त है। ऐसा कहा जाता है कि किले में अक्षय वट यानी अमर वृक्ष है। हालांकि यह वृक्ष किले के प्रतिबंधित क्षेत्र में है, जहां पहुंचने के लिए अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

अक्षय वट

अक्षय वट

इलाहाबाद किले में पतालपुरी मंदिर के पास स्थित अक्षय वट को अमर बरगद वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरीय शक्ति दिखाने के लिए कहा तो भगवान ने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया और फिर इस पानी को गायब भी कर दिया। इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थी, तब अक्षय वट का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। इसी कारण बरगद के वृक्ष को अमर वृक्ष माना जाता है। कुंभ मेले के दौरान यह जगह सभी तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता है।

इलाहाबाद संग्राहालय

इलाहाबाद संग्राहालय

इलाहाबाद संग्राहालय का निर्माण 1931 में किया गया था और संस्कृति मंत्रालय इसके लिए फंड मुहैया कराता है। अनूठी कलाकृतियों के संग्रहण के मामले में इस संग्राहालय की खासी प्रतिष्ठा है। यह संग्राहालय चंन्द्रशेखर आजाद पार्क के बगल में स्थित है। 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तभी इस संग्राहालय का उद्घाटन किया गया था। यहां 18 अलग-अलग गैलरी है, जिसमें पुरातात्त्विक खोज, प्राकृतिक इतिहास प्रमाण पत्र, आर्ट गैलरी और लाल-भूरे मिट्टी से बनी प्राचीन कलाकृतियां शामिल है। यहां जवाहरलाल नेहरू से जुड़े कुछ दस्तावेज और निजी चीजें के अलावा स्वतंत्रता आंदोलन की स्मृति चिन्ह भी प्रदर्शन के लिए रखी गई है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत के पुराने अंग्रेजी भाषा के विश्वविद्यालयों में से एक है। ब्रिटिश शासनकाल में उत्तरी प्रांत के गवर्नर सर विलियम म्योर को एक केन्द्रीय शिक्षण संस्थान बनाने का विचार आया। इसके लिए उन्होंने पहले म्योर कॉलेज की स्थापना की। बाद में यही कॉलजे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। शुरुआत में यह विश्वविद्यालय कोलकाता विश्वविद्यालय के अंतर्गत कार्य करता था। हालांकि 1887 में यह एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय बनने के साथ ही भारत का चौथा आधुनिक विश्वविद्यालय भी बन गया।

ऑल सेंट कैथिडरल

ऑल सेंट कैथिडरल

प्रसिद्ध ऑल सेंट कैथिडरल इलाहाबाद के दो प्रमुख सड़क के क्रासिंग पर स्थित है। 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने इस चर्च को उत्कृष्ट गौथिक शैली पर बनवाया था। इसकी डिजाइन प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार विलियम इमरसन ने तैयार की थी, जिन्होंने कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल की डिजाइन भी बनाई थी।

आनंद भवन

आनंद भवन

आनंद भवन का शब्दिक अर्थ होता है- खुशियों का घर। यह नेहरू-गांधी परिवार का पुस्तैनी मकान है, जिसे अब स्वराज भवन के नाम से जाना जाता है। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ने जब इस मकान को खरीदा था तब यह एक बुचड़खाना हुआ करता था। उन्होंने इस मकान का पूरी तरह से नवीनीकरण किया। उन्होंने इस मकान को इंग्लिश लुक देने के लिए यूरोप और चीन से फर्नीचर मंगवाए। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के समय इस घर का प्रयोग एक मुख्यालय के तौर पर किया जाता था और यहां विद्वानों और राजनेताओं की बैठकें हुआ करती थी।

खुसरो बाग

खुसरो बाग

दिवारों से अच्छी तरह से घिरा खुसरो बाग इलाहाबाद जंक्शन के करीब ही है। यहां मुगल बादशाह जहांगीर के परिवार के तीन लोगों का मकबरा है। ये हैं- जहांगीर के सबसे बड़े बेटे खुसरो मिर्जा, जहांगीर की पहली पत्नी शाह बेगम और जहांगीर की बेटी राजकुमारी सुल्तान निथार बेगम। इन्हें 17वीं शताब्दी में यहां दफनाया गया था। इस बाग़ में स्थित कब्रों पर करी गयी नक्काशी देखते ही बनती है जो मुग़ल कला संग स्थापत्य कला का एक जीवंत उदाहरण है।

पतालपुरी मंदिर

पतालपुरी मंदिर

पतालपुरी मंदिर भारत का सबसे पुराना मंदिर है और इसका अस्तित्व वैदिक काल के समय से मिलता है। जमीन के अंदर बना यह खूबसूरत नक्काशीयुक्त मंदिर इलाहाबाद किला के अंदर अमर बरगद के पेड़ के पास है। इस किले का इस्तेमाल भारतीय सेना द्वारा किया जाता है और यहां आम लोगों का प्रवेश वजिर्त है। हालांकि पूर्वी गेट नागरिकों के लिए खुला हुआ है। इसी गेट के जरिए लोग 16वीं शताब्दी की पतालपुरी मंदिर तक पहुंचते हैं, जहां हिन्दू देवी-देवताओं की खूबसूरत मुर्तियां रखी हुई है। यह मंदिर पवित्र संगम के बगल में ही है।

संगम

संगम

संगम एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मिलना। देखा जाए तो संगम भारत की तीन पवित्र नदियों की मिलन स्थली है। "त्रिवेणी संगम" इसका आधिकारिक नाम है और यहां गंगा, जमुना और लोककथाओं के अनुसार सरस्वती नदी आपस में मिलती है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती नदी जमीन के अंदर समा गई है। यह जगह हिन्दू और पंडितों द्वारा काफी पवित्र समझा जाता है। उनका मानना है कि यहां डुबकी लगाने से सारे बुरे कर्म धुल जाते हैं और मनुष्य पुनर्जन्म की प्रक्रिया से भी मुक्त हो जाता है। यह जगह हर 12 साल में एक बार कुंभ मेला आयोजित करने के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर 6 साल बाद अर्धकुंभ का आयोजन भी किया जाता है।

भोजन

भोजन

आज खाने के शौकीनों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है इलाहाबाद। आपको यहां जहां एक तरफ वेज खाना मिलेगा तो वहीं दूसरी तरफ ये शहर अपने यहां परोसी जाने वाले मुगलाई खाने के लिए भी जाना जाता है। तो अब यदि आप इलाहाबाद में हों तो यहां के मुगलाई खाने का जायका चखना न भूलिए।

शॉपिंग

शॉपिंग

वैसे तो भारत में शॉपिंग के लिए एक से बढ़कर एक डेस्टिनेशंस हैं । तो यदि आप ताज़े फलों के शौक़ीन हैं तो ये खूबसूरत शहर आपके ही लिए है| अगर आप यहां हैं तो यहां से गर्मियों के दौरान रसीले आम और सर्दियों में यहां के ख़ास अमरुद खरीदना न भूलिए| इसके अलावा इलाहाबाद आज अपनी ख़ास नमकीन के लिए भी जाना जाता है। यदि आप धार्मिक हैं तो यहां से गंगा जल अगरबत्ती जैसे सामान भी खरीद सकते हैं।

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