पटना के घाट पर हमहू अर्जिया देबइ, हे छठी मैया
हम ना जाईब दूसर घाट देखब ये छठी मैया!!
ऐसे ही अन्य भक्ति गीतों के साथ आरम्भ हो चुका है उत्तर और पूर्व भारत के कई हिस्सों में छठ पूजा का खुमार। हर साल दिवाली का पवित्र त्यौहार ख़त्म होते ही एक हफ्ते बाद शुरू होता है छठ पूजा का पवित्र त्यौहार जिसे पूरे रीति रिवाजों के साथ भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है, खासकर कि बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में। छठ पर्व को नेपाल के भी कई हिस्सों में पूरी भक्ति भावना के साथ मनाया जाता है।
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छठ पूजा या छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना के इस अनुपम लोकपर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी द्वारा भी मनाते हुए देखा गया है। आज की तारीख में धीरे-धीरे यह पर्व भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है।
बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखण्ड में इस पर्व की एक अलग ही महत्ता है।अन्य त्यौहारों के साथ-साथ छठ पूजा की भी तैयारियां साल के शुरुआत से ही होने लगती है। दिवाली का पावन अवसर ख़त्म होते ही लोग छठ पूजा की तैयारी में लग जाते हैं। नदी के घाटों को कई संस्थानों व सरकारी कर्मचारियों द्वारा साफ़ कर पूजा के लिए तैयार किया जाता है। छठ पूजा का यह रंगीन त्यौहार 4 दिनों तक चलता है।
चलिए आज हम इस पावन पर्व की कुछ खूबसूरत तस्वीरों के साथ जानते हैं इसकी धार्मिक महत्ता को!
छठ पूजा का नाम कैसे पड़ा?
छठ पर्व, छठ या षष्ठी नाम से बना है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत हो गया।
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लोक आस्था का पवित्र त्यौहार
छठ पर्व सूर्योपासना का प्रसिद्द पर्व है। इस पर्व को दो बार मनाया जाता है, पहले चैत के महीने में और दूसरी बार कार्तिक के महीने में। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिके लिए यह पर्व मनाया जाता है।
स्त्री और पुरुष दोनों ही सामान रूप से इस पर्व को मानते हैं। इस दिन सूर्य देवता के साथ-साथ षष्ठी देवी, यानि छठी मैया की भी पूजा की जाती है। ये लोक के समस्त बालकों की रक्षिका देवी है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम "षष्ठी" है।
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छठ पूजा की कथा
छठ पूजा से सम्बंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथानुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवोंको राजपाट वापस मिल गया। छठ पर्वकी परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान भी छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है।
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छठ पूजा की कथा
दूसरी कथानुसार, प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र प्रियव्रत के कोई संतान न थी। एक बार महाराज ने महर्षि कश्यप से दुख व्यक्त कर पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। महर्षि ने पुत्रेष्टि यज्ञ का परामर्श दिया। यज्ञ के फलस्वरूप महारानी को पुत्र जन्म हुआ, किंतु वह शिशु मृत था। पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया।
महाराज शिशु के मृत शरीर को अपने वक्ष से लगाये प्रलाप कर रहे थे, तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सभी ने देखा आकाश से एक विमान पृथ्वी पर आ रहा है। विमान में एक ज्योर्तिमय दिव्याकृति नारी बैठी हुई थी। राजा द्वारा स्तुति करने पर देवी ने कहा- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूँ। मैं विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूँ और अपुत्रों को पुत्र प्रदान करती हूँ।
देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया जिससे वह बालक जीवित हो उठा। महाराज की प्रसन्नता की सीमा न रही। वे अनेक प्रकार से षष्ठी देवी की स्तुति करने लगे। राज्य में प्रति मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को षष्ठी-महोत्सव के रूप में मनाया जाए-राजा ने ऐसी घोषणा करवा दी।
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छठ पूजा की विधी
नहाय खाय: पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर की सफाई कर, नहा धोकर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। भोजन में मुख्य रूप से कद्दू,चने की दाल और चावल बनाये जाते हैं।
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छठ पूजा की विधी
खरना: दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं, इसे खरना कहा जाता है। गुड़ की या गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर और रोटी प्रसाद स्वरुप बनाया जाता है और आस पास के लोगों को निमंत्रित कर उन्हें परोसा जाता है। इन सारी विधियों के दौरान साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है।
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छठ पूजा की विधी
संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सुबह से छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है, जिसमें ठेकुआ, चावल के लड्डू ज़रूर ही होते हैं। दिन के 2 या 3 बजे से शाम के अर्घ्य के लिए घाट जाने की तयारी शुरू हो जाती है।
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छठ पूजा की विधी
एक बांस की टोकरी जिसे दौरा कहते हैं में अर्घ्य का सूप,ठेकुआ,चावल के लड्डू,केले और अन्य फलों से सजाया जाता है और व्रतधारी के साथ परिवार के लोग और पास पड़ोस के लोग शाम का अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं।
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छठ पूजा की विधी
पूरे घाट में भक्तों की भीड़ इस तरह उमड़ती है कि एक मेले का दृश्य खुद ब खुद बन पड़ता है। व्रतधारी नदी के पानी में डुबकी लगा कर सूर्य देवता की राधना करती हैं फिर दूध और प्रसाद से सजे हुए सूप द्वारा सूर्य देवता को सभी लोग अर्घ्य देते हैं।
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छठ पूजा की विधी
उषा अर्घ्य: चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को प्रातः अर्घ्य दिया जाता है। व्रतधारी वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रतधारी कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।
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छठ पूजा
कहा जाता है कि यह व्रत कठिन तपस्या की तरह होती है। इस व्रत में पानी भी नहीं पिया जाता और सारे सुख-सुविधाओं को त्यागकर व्रतधारी फर्श पर ही एक चादर में सोते हैं। वे ऐसे कपड़े पहनते हैं जिनमें सिलाई नहीं होती।
शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए।
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छठ पूजा
इस पर्व को मनाने में हर किसी का योगदान बराबर का होता है। कई जगह लोग थोड़ी-थोड़ी दूर पर व्रतधारियों के लिए सुबह के अर्घ्य के बाद चाय पानी का प्रबंध करते हैं, घाट तालाबों को साफ़ किया जाता है आदि।
तो अगर आप अभी उत्तरप्रदेश झारखण्ड या बिहार की यात्रा पर हैं तो इस पावन उत्सव में शामिल होना मत भूलियेगा जिसमें मान्यता है कि आप इस पूजा में शामिल हो अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करवा सकते हैं।
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