में कई ऐसी जगहें मौजूद है, जिन्हें हम किताबों और टीवी के जरिये जानते हैं और बाद में उन्ही जगहे छुट्टियाँ भी प्लान करते हैं। तो वहीं कुछ जगहें ऐसी भी है जिन्हें हम जानते तक नहीं, इसी क्रम में मै आज आपको भारत के खूबसूरत" loading="lazy" width="100" height="56" />भारत में कई ऐसी जगहें मौजूद है, जिन्हें हम किताबों और टीवी के जरिये जानते हैं और बाद में उन्ही जगहे छुट्टियाँ भी प्लान करते हैं। तो वहीं कुछ जगहें ऐसी भी है जिन्हें हम जानते तक नहीं, इसी क्रम में मै आज आपको भारत के खूबसूरत
लखनऊ से जुड़ी ये बातें शायद ही जानते होंगे आप!
मैकलुस्कीगंज को कभी भारत का मिनी लन्दन कहा जाता था, आप यहां आज भी पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और एंग्लो समुदाय के बंगलों को देख सकते हैं। तो बिना देरी किये स्लाइड्स में जानते हैं कि, आखिर कहां है भारत का यह मिनी लन्दन...
कहां स्थित है भारत का मिनी लंदन?
भारत का मिनी लन्दन मैकलुस्कीगंज झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर-पश्चिम में करीब 65किलोमीटर दूर स्थित है।PC:Skmishraindia
इस कस्बे को किसने बसाया?
इस कस्बे को बसाने का सारा श्रेय एंग्लोइंडियन समुदाय के व्यवसायी अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की को जाता है।एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई दुनिया की इस बस्ती को मिनी लंदन कहा जाता है।PC:Skmishraindia
मैकलुस्कीगंज
जानकारी के मुताबिक, 1930 के दशक में रातू महाराज से ली गई लीज की 10 हजार एकड़ जमीन पर अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की नामक एक एंग्लो इंडियन व्यवसायी ने इसकी नींव रखी थी। घने जंगलों और आदिवासियों गाँवों के बीच इस जगह को मैकलुस्की ने कोलोनाइजेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के सहयोग से बसाया और तब इसका नाम मैकलुस्कीगंज पड़ा।
मैकलुस्कीगंज
मैकलुस्कीगंज और आस-पास के गाँवों में 365 बंगले बने हुए हैं, जहां एंग्लो इंडियन समुदाय के लोग रहते थे। असल में, एक समय ऐसा आया जब अंग्रेज सरकार ने एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रति बड़ा संकट खड़ा हो गया। तब मैकलुस्की ने अपने समुदाय को इसी गाँव में बसाया।
क्यों पड़ा नाम मिनी लन्दन?
इस समुदाय के लोगों ने यहां कई आकर्षक बंगले बनाए और वहीं रहने लगे। देखते ही देखते पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और एंग्लो समुदाय के लोगों की मौजूदगी ने इस क्षेत्र को लंदन का रूप दिया और तभी से यह कस्बा गाँव मिनी लंदन के नाम से मशहूर हो गया।
अपनी पहचान खो रहा
समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाने के कारण यहां राहगीर कम ही आते हैं लेकिन आज झारखंड की खूबसूरती में चार-चांद लाने वाला ये मिनी लंदन धीरे-धीरे अपना असतित्व खोता जा रहा हैं।
एंग्लो-इंडियन
एंग्लो-इंडियन समुदाय हमारे समाज और संस्कृति की विरासत हैं। इस समुदाय का यह सारी दुनिया में इकलौता गांव है।उनकी समृद्ध संस्कृति और विरासत को बचाने के लिए सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। टूरिस्ट प्लेस के तौर पर इसे विकसित करने की कई योजनाएं हैं और उनमें से कुछ पर काम भी शुरू हो चुका है।
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