
भारत में जल प्रबंधन की परंपरा को प्राचीन काल की सबसे अद्भुत तकनीक के रूप में देखा जा सकता है। पौराणिक ग्रंथों में भी जल संचित करने की सबसे उच्चतम विधियों का उल्लेख है। जैसे तालाब, बांध, नहर, झील और बावड़ियां। समय, काल, परिस्थितियों के अनुसार, इन तकनीकों का इस्तेमाल सदियों से हमारा समाज करते आ रहा है।
'नेटिव प्लानेट' के इस खास खंड में आज हम बात करेंगे, राजस्थान की खूबसूरत 'बावड़ियों' के बारे में, जिनकी सरंचना व वास्तुकला, किसी का भी मन मोह सकती हैं। हमारे साथ जानिए राजस्थान स्थित प्रसिद्ध बावड़ियों के बारे में, जो अब खूबसूरत पर्यटन स्थल बन चुकी हैं।

बावड़ियों का इतिहास
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भारत में बावड़ियों को बनाने और उनके इस्तेमाल का लंबा इतिहास रहा है, ये वो सीढ़ीदार कुएं या तालाब हुआ करते थे, जहां से जल भरने के लिए सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता था। भारत के कई राज्यों में इनका इस्तेमाल अगल-अलग नामों से होता रहा है, जैसे महाराष्ट्र में 'बारव', गुजरात में 'वाव', कर्नाटक में 'कल्याणी' आदि। राजस्थान में आज भी कई छोटी बड़ी बावड़ियों को देखा जा सकता है, जिनका इस्तेमाल अब न के बराबर होता है। पर इनकी सरंचना आज भी इनकी आकर्षक खूबसूरती को बयां करती हैं।

चांद बावड़ी, आभानेरी
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राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गांव स्थित 'चांद बावड़ी', को दुनिया की सबसे गहरी बावड़ी का दर्जा प्राप्त है, जिसका निर्माण राजा मिहिर भोज ने करवाया था। राजा मिहिर को चांद नाम से भी जाना जाता था, इसलिए इस बावड़ी का नाम 'चांद' पड़ा। 13 मंजिला वाली इस बावड़ी की गहराई 100 फीट से भी ज्यादा है, जिसमें 3500 सीढ़ियां बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों को भूलभुलैया भी कहा जाता है। चांदनी रात में इस बावड़ी का पानी दूधिया सफेद जैसा नजर आता है। अपनी गहराई के चलते इसे 'अंधेरे-उजाले की बावड़ी' भी कहा जाता है, जहां शाम के वक्त मुश्किल से ही कोई जाता होगा । इस पूरी बावड़ी को खूबसूरत कला से सजाया गया है, जगह-जगह आकर्षक कलाकृतियां की गई हैं। बावड़ी के नीचे किसी गुप्त सुरंग के बारे में भी पता चला है, जिसका इस्तेमाल शायद आपातकालीन परिस्थितियों में किया जाता था।

रानी जी बावड़ी, बूंदी
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राजस्थान के बूंदी स्थित 'रानी जी बावड़ी' की गिनती खूबसूरत बावड़ियों में की जाती है। इस बावड़ी का निर्माण, राजा अनिरुद्ध सिंह की रानी 'नाथावती जी' के कहने पर करवाया गया था। लगभग 46 मीटर गहरी यह बावड़ी अपनी आकर्षक नक्काशी व संरचना के लिए जानी जाती है। बावड़ी तक पहुंचने के लिए एक भव्य प्रवेश द्वार को पार करना होता है, जहां से घुमावदार खंभे और चौड़ी सीढ़ियां शुरु होती हैं। यहां लगभग 100 सीढ़ियां बनी हुईं हैं। यहां भारतीय व मुगलकालीन स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण देखा जा सकता है। अब यह बावड़ी भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।

नीमराना की बावड़ी
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नीमराना राजस्थान के अलवर जिले का एक प्राचीन शहर हैं, जो अपने ऐतिहासिक किले के लिए जाना जाता है। नीमराना, अपनी प्राचीन बावड़ियों के लिए भी प्रसिद्ध है। जिसका निर्माण 18वी शताब्दी में, राजा टोडरमल ने करवाया था। यह एक नौ मंजिला बावड़ी है। जिसकी लंबाई लगभग 250 फुट व चौड़ा 80 फुट होगी। इस बावड़ी का आकार इतना बड़ा था कि समय आने पर सैना की एक छोटी टुकड़ी को इसमें आसानी से छुपाया जा सकता था। नीचे की तरफ आते-आते इस बावड़ी में तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है। इस बावड़ी को खूबसूरत आकृतियों से सजाया गया है। अगर आप नीमराना जाएं, तो इस ऐतिहासिक बावड़ी को देखना न भूलें।

पन्ना मीना की बावड़ी
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राजस्थान का जयपुर अपने खूबसूरत महलों के साथ-साथ प्राचीन बावड़ियों के लिए भी जाना जाता है। जिन्हें देखने के लिए देश-दुनिया से पर्यटक आते हैं। जयपुर के आमेर स्थित पन्ना मीना बावड़ी एक प्राचीन संरचना है, जो अपनी खूबसूरत कलाकृतियों के लिए जानी जाती है। जहां यह बावड़ी है व क्षेत्र (आमेर) कभी जयुपर की प्राचीन राजधानी हुआ करता था। इस खूबसूरत बावड़ी के एक ओर जयगढ़ दुर्ग है, जिसे सैनिक इमारतों में से एक माना जाता है। और दूसरी ओर खूबसूरत पहाड़ी। इस बावड़ी का निर्माण 17वीं शताब्दी के आसपास करवाया गया था। यह बावड़ी अपनी अद्भुत सीढ़ियों, व अष्टभुज किनारों व बरामदों के लिए प्रसिद्ध है।

भीकाजी की बावड़ी
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राजस्थान के अजमेर से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित गगवाना में एक 400 वर्ष पुरानी बावड़ी मौजूद है, जिसे 'भिकाजी की बावड़ी' के नाम से जाना जाता है। गगवाना, अजमेर-आगरा मार्ग पर स्थित है, जिसका इस्तेमाल मुगल काल के दौरान, दिल्ली से अजमेर जाने वाला राहगीर किया करते थे। उस समय यह बावड़ी ताजे पानी से लबालब भरी रहती थी। मार्ग से गुजरने वाले, इस बावड़ी के पानी से अपना गला तर किया करते थे। बावड़ी में नीचे उतरने के लिए कई सीढ़ियां भी बनी हुई हैं। इस बावड़ी में कई प्राचीन शिलालेख मौजूद हैं, जिनपर उस समय की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया हुआ है। यहां मौजूद शिलालेखों में फारसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है।

हाड़ी रानी की बावड़ी
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हाड़ी रानी की बावड़ी, टोंक जिले के टोडरसिंह शहर में स्थित एक प्राचीन बावड़ी है। जिसका निर्माण बूंदी की राजकुमारी हाड़ी ने करवाया था। ऐसा माना जाता है, इसका निर्माण 16 शताब्दी के आसपास हुआ होगा। यह बावड़ी नीचे की ओर आयातकार रूप में बनी हुई है। बावड़ी में दो मंजिला गलियारें भी हैं, जिनके एक-एक ओर खूबसूरत मेहराव बने हुए हैं। बावड़ी की निचली मंजिल पर ब्रह्मा, गणेश और देवी महिषासुर दामिनी की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। बावड़ी के एक ओर खूबसूरत विश्राम कक्ष भी बने हुए हैं, जो अपनी ठंडक के लिए प्रसिद्ध हैं।

रंगमहल, सूरतगढ़ की बावड़ी
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रगमहल किसी जमाने में यौधेय गणराज्य की राजधानी हुआ करता था। जिसके बाद यह कई बाहरी शक्तियों के नजर में चढ़ गया। रंगमहल पर कब्जा करने के लिए यहां सिकंदर ने भी आक्रमण किया था । लेकिन हूणों की चढ़ाई के बाद रंगमहल पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। पुरातत्व खुदाई के दौरान यहां से एक प्राचीन बावड़ी प्राप्त हुई है, जिसकी में 2 फुट लंबी और 2 फुट चौड़ी ईंटों का इस्तेमाल किया गया है।